ऐ इंसान मुड़के तो जरा देख भर ले पीछे,
मंजिल से पहले ही रुक गए जो कदम तेरे ..
चलना तो माँ का दामन थाम के सीखा पर जमाने के साथ चलना न आया तुझे ..।
तूने गीता पढ़ी,कुरान पढ़ी,पढ़े वेद, साधु संत,महात्माओं और शिक्षक से ज्ञान की बात तो तूने सुनी समझी।
तुझे अथाह प्यार देने वाली माँ जो मिली,
कंधों पर उठाने वाला पिता मिला, बहिन मिली भाई मिला,
तो राह पे दोस्तों का गुमान मिला।
ऐ इंसान कदम कैसे फिर रुक गए तेरे….।
रास्तों का अंबार तूने बनाया,घर को संसार तूने बनाया,
तो कइयो को रास्ता दिखाया तूने।
पर इक पल में सब खाक हो गया,
जब तू नासमझी में खुदख़ुशी के ख़ंजर को अपने ही जिस्म पे मढ़ गया।
हे इंसान फिर कदम केसे रुक गए तेरे..।
गमे जिंदगी की राह में छोड़ गया, जिसका दामन थाम चलना तूने सीखा,
उसे कैसे आंसू दे गया तू….
बहन रोई,भाई रोया घर में तू मातम सजो गया।
क्या दिया तूने इन्हें मरकर भी।
खुद तो तू चला गया पर,सबको आँसूओं की सौगात दे गया।
मंजिल भी तेरी होगी,आशियाना भी तेरा होगा,
अब आगे नहीं, पीछे मुड़कर तो देख जरा..
कितने मासूम चेहरों की नजर टिकी है तुझ पर,
कितनों का तू रहनुमा, आसमान है..
हे इंसान कैसे कदम रुक गए तेरे …. ।
चलना तो सीखा पर चलना न आया तुझे …..।
परिचय : सुनील विश्वकर्मा मध्यप्रदेश के छोटे गांव महुआखेड़ा (जिला गुना) के निवासी हैं। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव एवं बाद की इंदौर से (स्नातकोत्तर)प्राप्त की है। आप लिखने का शौक रखते हैं।वर्तमान में इंदौर में प्राइवेट नौकरी में कार्यरत हैं।