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जा बिटिया जा तुझे विदाई ।
दर्श दिखाकर अगन लगाई ।।
अरमां थे पहली छिब तेरी
निरखूँगा दुलार करूंगा
तुझे गोद मे खेल खिलाता
मेरा घर गुलजार करूंगा ।।
सुप्त इच्छाएं आन जगाई ।
दर्श दिखाकर अगन लगाई ।।
दादा-दादी,नाना-नानी
मामा-मामी,चाचा-ताई।
सब तुझको ही तॉक रहे थे
अगल बगल सब झॉक रहे थे ।।
आई सबको देख रूलाई ।
दर्श दिखाकर अगन लगाई ।।
एक पाँव पर खड़े सभी थे
अंगद बनकर अड़े सभी थे
डॉक्टर से हाथाजोड़ी की
ईश्वर से भी लड़े सभी थे।।
तुमने हमसे करी ठगाई ।
दर्श दिखाकर अगन लगाई ।।
तुम होती तो हंसता बचपन
खिलते पल्लव,गाते-मंगल ।
गली-मौहल्ले बॉट पताशे
नाईन माई करती चुहल ।।
खूब निभाई सगी-सगाई।
दर्श दिखाकर अगन लगाई ।।
दिव्य आत्मा बनकर आई
दो मिनट की खुशियॉ लाई।
परम तत्व मे मिली यकायक
ऐसी भी थी क्या रूसवाई ।।
देखी तेरी आज रूसाई ।
दर्श दिखाकर अगन लगाई ।।
पता चला था पिता बना हूं
माता पीड़ा मुक्त हुई थी ।
संदेशो के पंख लगे तब
शुभकामना ढेरों पाई ।।
दर्दनाक थी दगा-दगाई ।
दर्श दिखाकर अगन लगाई ।।
माता की ममता बिसराई
वज्र गिरा मुझ पे दुखदाई ।
दिव्या तुझको नाम दिया है
तुझे विदाई, तुझे विदाई ।।
जा बिटिया जा तुझे विदाई ।
दर्श दिखाकर अगन लगाई ।।
जहां रहो उजियारा करना
रहो कहीं भी पर ना डरना ।
याद कभी जो आ जाए तो
कदम मेरे घर फिर से धरना ।।
कर्ज तुम्हारा यहॉ बकाई ।
दर्श दिखाकर अगन लगाई ।।
फिर आने की तुम्हे बुलाई ।
जा बिटिया जा तुझे विदाई ।।
-*
जा बिटिया जा तुझे विदाई ।
दर्श दिखाकर अगन लगाई ।।
अरमां थे पहली छिब तेरी
निरखूँगा दुलार करूंगा
तुझे गोद मे खेल खिलाता
मेरा घर गुलजार करूंगा ।।
सुप्त इच्छाएं आन जगाई ।
दर्श दिखाकर अगन लगाई ।।
दादा-दादी,नाना-नानी
मामा-मामी,चाचा-ताई।
सब तुझको ही तॉक रहे थे
अगल बगल सब झॉक रहे थे ।।
आई सबको देख रूलाई ।
दर्श दिखाकर अगन लगाई ।।
एक पाँव पर खड़े सभी थे
अंगद बनकर अड़े सभी थे
डॉक्टर से हाथाजोड़ी की
ईश्वर से भी लड़े सभी थे।।
तुमने हमसे करी ठगाई ।
दर्श दिखाकर अगन लगाई ।।
तुम होती तो हंसता बचपन
खिलते पल्लव,गाते-मंगल ।
गली-मौहल्ले बॉट पताशे
नाईन माई करती चुहल ।।
खूब निभाई सगी-सगाई।
दर्श दिखाकर अगन लगाई ।।
दिव्य आत्मा बनकर आई
दो मिनट की खुशियॉ लाई।
परम तत्व मे मिली यकायक
ऐसी भी थी क्या रूसवाई ।।
देखी तेरी आज रूसाई ।
दर्श दिखाकर अगन लगाई ।।
पता चला था पिता बना हूं
माता पीड़ा मुक्त हुई थी ।
संदेशो के पंख लगे तब
शुभकामना ढेरों पाई ।।
दर्दनाक थी दगा-दगाई ।
दर्श दिखाकर अगन लगाई ।।
माता की ममता बिसराई
वज्र गिरा मुझ पे दुखदाई ।
दिव्या तुझको नाम दिया है
तुझे विदाई, तुझे विदाई ।।
जा बिटिया जा तुझे विदाई ।
दर्श दिखाकर अगन लगाई ।।
जहां रहो उजियारा करना
रहो कहीं भी पर ना डरना ।
याद कभी जो आ जाए तो
कदम मेरे घर फिर से धरना ।।
कर्ज तुम्हारा यहॉ बकाई ।
दर्श दिखाकर अगन लगाई ।।
फिर आने की तुम्हे बुलाई ।
जा बिटिया जा तुझे विदाई ।।
#नाम- ओम प्रकाश सरगरा
साहित्यिक उपनाम- ओम अंकुर
वर्तमान पता- भीलवाड़ा राजस्थान
शिक्षा- शास्त्री , शिक्षा शास्त्री ,आचार्य , संस्कृत साहित्य
कार्यक्षेत्र- शिक्षा विभाग के साथ शैक्षिक नवाचारो पर अकादमिक ,तकनीकी समर्थन
विधा -गद्य ,पद्य ,चम्पू (गीत , कविताएं ,कहानियां ,लेख ,मुक्तक आदि )
प्रकाशन-थार सप्तक ,बिणजारो ,जागती जोत ,कथेसर ,साहित्यांचल आदि ।
सम्मान- 1.विशिष्ट साहित्यकार -सम्मान 2005 राजस्थान पाठक पीठ जयपुर
2.अम्बेकर सेवा पुरस्कार ,दलित साहित्य अकादमी हरियाणा
3.युवा कवि पुरस्कार ,भारत विकास परिषद बिजयनगर अजमेर
ब्लॉग- सृजनांकुर ,कवि ओम अंकुर
अन्य उपलब्धियाँ- आकाशवाणी जयपुर तथा दूरदर्शन जयपुर से पिछले 15 वर्षो से समय -समय पर आमंत्रण पर कविता पाठ ।
लेखन का उद्देश्य- शिक्षा ओर साहित्य को आम जन तक पहुंचाना तथा लोगो के दर्द का मरहम बनना ।
एक मौलिक रचना-शीर्षक *”- जा बिटियॉ जा तुझे विदाई “*
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