वैशाख का महीना तेज घूप और चुनाव का मौसम हर तरफ चहल पहल प्रचार की गाडियाँ रोज गाँव मे आते और प्रचार करते। अलग- अलग पार्टियो के होने की वजह से सभी के चुनाव श्लोगनो में अंतर होता था परंतु मकसद एक ही होता था वोटरो को लुभाना और उन्हें तैयार करना ताकि अपने प्रत्याशी को जीता सकें ।
बसमतिया एक विधवा औरत थी वह गाँव में ही अपनी खेती करती थी और बचे समय में दूध का व्यापार। साधारण सी दिखने वाली वह बहुत ही हिम्मत वाली ज्ञानवान और कार्य कुशल मे दक्ष थी।उसके दो बच्चे थे जो गाँव के स्कुल में ही पढ़ रहे थे।जब प्रचार गाडी गाँव में प्रचार करने आता था तो बच्चो की भीड हो जाती थी जिसमें बसमतिया के बच्चे भी होते थे जो बसमतिया के परेशानी का कारण बन रहा था क्योंकि जब वो प्रचार गाडी चली जाती बच्चे उसकी नकल उतारने लगते और कहते मै भी नेता बनूँगा। बसमतिया बच्चो की बात सुनकर खीझ जाती थी।
दरअसल पति के मौत के बाद वह नेताओ के नाम से नफरत करने लगी थी उसे नफरत थी वैसे तमाम सिस्टम से जो वक्त रहते अपने पति का ईलाज नही करा सकी तिल तिल कर वह मौत के करीब पहुँच गया याद है जब वह बडे बडे नेताओ के आगे झोली फैलायी लेकिन सिर्फ आश्वासन और दौडभाग के अलावा कुछ न मिला इतनी सामर्थ नही थी कि प्राइवेट हास्पीटल मे ईलाज कर सके।दर असल रामकिशुन को ब्रेन ट्यूमर था जिसका आपरेशन जरूरी था लेकिन जरूरी कागज जुटाने भाग दौड और सरकारी कार्यो मे कुछ समय लग गये जिस वजह से ट्यूमर फट गया और रामकिशुन की मौत हो गयी।वह कहाँ नही गयी किसका दरवाजा नही खटखटाया पर कागजी कार्य में समय लगना ही था जो कि एक सिस्टम का हिस्सा है फलस्वरूप वह सोचती है अगर तत्परता से कार्य होता तो वह पति को बचा सकती थी ऐसा सोचना शायद उसके लिए उचित भी था।यही कारण है कि बसमतिया अपने बच्चो को नेताओ और दफ्तरों से दूर रखना चाहती थी। वह चाहती थी बच्चे पढ़ लिखकर एक सभ्य नागरिक के साथ उच्च कोटि का किसान बने जिस पर सभी गर्व करे। बसमतिया दूध का करोबार कर अच्छी खासी जमीन बना ली थी और योजना थी कि बच्चो को इतनी जमीन हो जाये कि वो अपना और अपनी जीविका के लिए इस घरती माँ की सेवा करें। बडे बडे नेता उनके बेटे के पास आये चुनाव के दिनों में यही सब सोच रही थी कि इतने में छोटू आ गया और बोला माँ माँ ये प्रचार गाडी पहले क्यों नही आती थी अब क्यों आती है?
बेटा जिस तरह से तुम्हारे स्कूल में हेड सर है न उसी तरह से हमारे देश में हेड सर का चुनाव होता है सभी लोग वोट डालेंगे फिर जो जीतेगा उस दल के लोग हेड सर को चुनेगे और वह देश का र्शीष व्यक्ति होगा जो सबको समान रूप से देखेगे यह प्रत्येक पांच साल में एक बार होता है।छोटू बोला फिर मै भी चुनाव लडूंगा?
माँ बोली चुनाव लडकर भी देश की सेवा करनी है और किसान बनकर भी देश सेवा किसान बनकर करोगे बेटा तो सब मिलेंगे माँ गाँव और पुरखो की जमीन और नेता बनोगे तो सिर्फ बेचैनी पावर रूतवा अपार घन की भूख जो दिन प्रतिदिन बढती ही जाएगी और मिट्टी किसान गाँव समाज से तुम्हें दूर कर देगी।
छोटू बोला!
फिर तो मै किसान ही बनूँगा ।
इतना सुनते ही बसमतिया के आँखो में आंसू आ गये और वह धरती को एकटक निहारने लगी।
“आशुतोष”
नाम। – आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम – आशुतोष
जन्मतिथि – 30/101973
वर्तमान पता – 113/77बी
शास्त्रीनगर
पटना 23 बिहार
कार्यक्षेत्र – जाॅब
शिक्षा – ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन – नगण्य
सम्मान। – नगण्य
अन्य उलब्धि – कभ्प्यूटर आपरेटर
टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य – सामाजिक जागृति