डॉ.मीना कुमारी सोलंकीनिमलीवाली
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प्यार दिखाकर गोरी तुमने,
मन तरंग झकझोर दिया।
बिन डोर उड़ गई पतंग ,
गिरडा जाने! किस ओर गया।।
पीपल पर्ण फुर हुआ जाए,
आई समीर वेदवती ।
बैठ तटिनी सोच रहा, हुई
क्यूँ विचलित मेरी मति।।
जित देखूं तित छबी तुम्हारी,
नैन,चैन निर्मूल हुए ।
शुक-शुकीनी से आकर्षित,
भावभीनी सब फूल हुए।।
मन-मुग्ध “मीन “कहो दिल हुआ,
अब न गम सराबोर है.
ना दुष्ट,हीनता कोई,अब
अपनापन चहुँ ओर है।।
बस एक कर्म और कर मुझपर,
क्रम ये सातों जन्म चले ।
सात फेरों के बंधन मे बंध,
प्रीत हमारी फूले व फले,
अस्तित्वहीन मूढ पात्र को,
अस्तित्व प्रेम-ज्ञान दिया।
संरचना,संश्लेषण सीखा,
आत्मीय सम्मान दिया..
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