शख्सियत नहीं नम्बर केवल….

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mukesh dube
“तुमको कुछ नहीं होगा… तुम सुरक्षित हाथों में हो।” अटपटी सी अंग्रेजी में कहा था उसने।
होश में आने के बाद मंजीत ने खुद को किसी अस्पताल में पाया। जिस्म से कई मशीनें जुड़ी थीं और वो भी….
किसी जरूरी मीटिंग के लिए दिल्ली आया था। प्रेजेंटेशन के दौरान उसे घबराहट हुई थी, वॉमिटिंग सेंशेसन के बाद क्या हुआ, याद नहीं।
कुछ देर में सीएमडी के साथ नवीन आया। उनसे पता चला उसे कॉर्डियक अटैक के बाद गुड़गाँव में मेदान्ता हास्पिटल में लाया गया था।
एक और दिन उस जगह पर गुजरा और मार्था आईसीयू II में उसके साथ रही। उन 24 घंटों में उसकी हर कराह पर मार्था को अपने करीब पाया। सुबह ब्रश कराकर जब स्पंज कर रही थी वो मंजीत परेशान था… अस्पताल वालों ने सिर्फ़ लोअर और एक खुला गाउन पहना दिया था उसे और मार्था ने वो उतार कर अलग कर दिया था। मंजीत ने आँख बंद कर ली थीं। जब वापस जिस्म पर लिबास आया उसने देखा था। उस सांवले चेहरे पर कोई शिकन या उलझन नहीं दिखी थी। ग्लब्स उतार कर उसने बैड को ऊँचा कर सिरहाना बना बैठा दिया। फिर एक फोल्डिंग टेबल को बिल्कुल सामने एडजस्ट कर चाय बना दी। मैरी बिस्किट के साथ चाय पिलाकर वापस लिटा दिया।
उसके बाद दिनभर जाँचों का सिलसिला और अगली सुबह ओटी के लिए रवाना होने से पहले उसका गुलाब देना।
फिर एक बार न जाने कितने वक्त बेहोशी…. सर्जरी के बाद जब होश आया वही चेहरा था सामने। उसके बाद का पूरा सप्ताह मार्था की देखरेख में गुजरा। मंजीत भी अब सहज होने लगा था। अब मार्था का स्पर्श अजनबी नहीं लगता था। स्पंज व चैंज करते समय भी घबराहट नहीं होती थी। मंजीत जब नहीं देखता था उसे, बेचैन हो पूछता था। ड्यूटी नर्स भेदभरी मुस्कान के साथ बतलाती थी, एट अॉवर्स की ड्यूटी होती है… उसको भी आराम चाहिए होता है मि. मंजीत……
जिस दिन उसे अस्पताल से डिस्चार्ज किया जाना था, खुश होने की जगह उदास था। अॉफिस से कई लोग आये थे और उसे दिल्ली ले गये थे।
एक महीने बाद फॉलोअप चैकअप के लिए आना था। आज मार्था कहीं भी नहीँ नज़र आई। सेक्टर 38 में अस्पताल के सामने स्काई हाई बिल्डिंग में रूम लिया था मंजीत ने। शाम को चाय व खाने की रहड़ियों पर बैठे शिफ्ट खत्म कर लौटती व अपनी ड्यूटी के लिए जाती नर्सों में मार्था को तलाशा लेकिन वो तो जैसे गुम हो गई थी।
अगले दिन भी सुबह से वहीं अड्डा जम गया था। सुबह आठ बजे वाली शिफ्ट के लिए नर्स तेजी से सड़क पार कर सामने अस्पताल में जा रही थीं। तभी मार्था कुछ नर्स के साथ आती दिखी। मंजीत ख़ुशी से उछल पड़ा। लेकिन यह क्या… मार्था ने उसे देखकर भी नज़रअंदाज़ किया और चली गई। शाम को भी यही हुआ। अब मंजीत की हिम्मत जवाब देने लगी थी। वो क्यों कर रही है ऐसा ?
अगली सुबह उसने मार्था को रोक लिया। मार्था… मैं मंजीत।
नाइस टू मीट यू मंजीत जी….कुछ काम था आपको… आप मेरा नाम कैसे जानते हैं…
मार्था… मैं मंजीत। अक्टूबर में एडमिट था यहाँ। आपने ही मेरी देखभाल की थी….
ओह्ह!! आपकी सेहत कैसी है अब ? फिट लग रहे हैं। ओके… मुझे देर हो रही है। अपना खयाल रखियेगा कहकर वो चली गई।
मंजीत उसे जाता देखकर ज़िंदगी को दूर जाता महसूस करता रहा।
दो दिन जब वो नहीं लौटा, अॉफिस में नवीन को फिक्र हुई और वो उसे तलाशता आ गया। मंजीत की बात सुन वो भी परेशान हो उठा। इश्क़ दा मामला था। मंजीत बेखुदी में ही लेकिन मार्था को चाहने लगा था। नवीन ने लोकल कांटेक्ट इस्तेमाल कर मार्था का पता निकाल लिया। शाम शिफ्ट खत्म कर जब मार्था फ्लैट पर पहुँची, नवीन उससे मिला।
मार्था पूरी बात कर जोर से हँसी। खुद को संयत किया और बोली, मि. नवीन। हर पेशेंट हमारे लिए खास जगह रखता है। हमारी ट्रैनिंग में हमको यही सिखाया जाता है। ईवन जैण्डर भी नहीं रहता किसी भी पैशेट का न उम्र रहती है। बच्चे से बूढ़े तक हर पैशेंट का बेड नम्बर ही पहचान होती है हमारे लिए। न चेहरा न नाम… कुछ याद नहीं रहता। प्लीज़… समझाना आपके दोस्त को। नर्स हर रोज किसी पैशेंट को अटैंड करती है। हर एक को वो याद रख सके यह असंभव है और प्यार की बात तो हमारे प्रोफेशन में बेईमानी है…. मि. मंजीत अपना ध्यान रखें। समय पर दवा लें और अपना चैकअप करवाते रहें…….
नवीन सोच रहा था, कुछ भी तो गलत नहीं कहा मार्था ने। आदमी अस्पताल और जेल में बस नम्बर भर रह जाता है… मार्था के लिए मंजीत भी केवल नम्बर था…. और नम्बर से मुहब्बत कैसी……. उसके लिए शख्सियत लाजिमी है।
#मुकेश दुबे
परिचय –
नाम  :. मुकेश दुबे
माता : श्रीमती सुशीला दुबे
पिता : श्री विजय किशोर दुबे
सीहोर(मध्यप्रदेश) 
आरंभिक से स्नातक शिक्षा सीहोर में। स्नातकोत्तर हेतु जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय जबलपुर में प्रवेश। वर्ष 1986 से 1995 तक बहु राष्ट्रीय कम्पनी में कृषि उत्पादों का विपणन व बाजार प्रबंधन।
1995 में स्कूल शिक्षा विभाग मध्यप्रदेश में व्याख्याता। वर्ष 2012 में लेखन आरम्भ। 2014 में दो उपन्यासों का प्रकाशन। अभी तक 5 उपन्यास व 4 कथा संग्रह प्रकाशित। मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच भारत वर्ष द्वारा 2016 में लाल बहादुर शास्त्री साहित्य रत्न सम्मान से सम्मानित।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।