बचपन से काँटों में खेला,
आई न कोई सुख की बेला..
कहते हो ये सहज मान लूँ,
पर कैसे दिल को समझाऊँ..
कैसे गीत खुशी के गाऊँ।
जी भर कर मैं रो न पाया,
करवट बदली सो न पाया..
आँसू बोझ न कम कर पाए,
लब पे हँसी कहाँ से लाऊँ..
कैसे गीत खुशी के गाऊँ।
जीवन में कुछ नया नहीं है,
समय अभी वो गया नहीं है..
बुरे दिनों से . . . याराना है,
तुम कहते कुछ नया सुनाऊँ..
कैसे गीत खुशी के गाऊँ।
कहने को संसार बहुत है,
जीवन का व्यापार बहुत है..
तुम ही कोई राह बताओ,
जिससे दूर गगन तक जाऊँ..
कैसे गीत खुशी के गाऊँ।
#उपेन्द्र द्विवेदी
परिचय : उपेन्द्र द्विवेदी म.प्र. के सतना के ताला में निवास करते हैं।१९८२ में जन्मे हैं और एमबीए सहित हिन्दी सहित्य में स्नातक हैं। वर्तमान में महाराष्ट्र में कार्यरत हैं। आप खास तौर पर कविताएं रचते हैं। आपको गीतिका गौरव सम्मान,सारस्वत सम्मान और श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान आदि मिले हैं। प्रदेश-देश के प्रमुख समाचार पत्रों में नियमित रुप से आपकी रचनाएं प्रकाशित होती हैं। विहंग प्रीति के (साझा संकलन), गीतिका है मनोरम सभी के लिए (साझा संकलन)और निहारिका-एक आकाश गंगा(काव्य संग्रह)कृति आपके नाम हैं।
Jabarjast likhate ho bhai .dil KO chhu jata hai tumahara har lekh.
Bahut umda panditji
Bahut sundar