आँसूओं के दरिया बहाने से कुछ नहीं होगा,
उठ और कर संघर्ष,रोने से कुछ नहीं होगा।
ये जहां तो ऐसे ही हँसता आया है दूसरों पर,
मनाकर यूँ हार-जीत खोने से कुछ नहीं होगा।
दिखा दे कि हिम्मत और हौंसले अभी बुलंद हैं,
गवाँकर मौका चैन से सोने से कुछ नहीं होगा।
हक की लड़ाई में कोई किसी का भगवान नहीं,
मिटाकर सत्य हक जताने से कुछ नहीं होगा।
न समझ की देर है तो फिर सवेर है तेरे लिए,
बुझाकर चिराग दिल जलाने से कुछ नहीं होगा ।
अपनी कश्ती को खुद किनारे लगाना सीख ले,
बहलाकर लोगों को मनाने से कुछ नहीं होगा ।
#मनीष कुमार ‘मुसाफिर’
परिचय : युवा कवि और लेखक के रुप में मनीष कुमार ‘मुसाफिर’ मध्यप्रदेश के महेश्वर (ईटावदी,जिला खरगोन) में बसते हैं।आप खास तौर से ग़ज़ल की रचना करते हैं।