#संदीप ‘सरस’■कवि,साहित्यकार/समीक्षक■साहित्य सम्पादक-दैनिक राष्ट्र राज्य■संस्थापक/संयोजक-साहित्य सृजन मंच■पता-सीतापुर(उत्तरप्रदेश)
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तुम जो मुझसे मिल लेते हो,
मन का विचलन कम होता है।
कह कर अपनी राम कहानी
मैं भी हल्का हो लेता हूँ।
तेरी गोदी में सर रखकर,
मैं भी सुख से सो लेता हूँ।
तेरी जुल्फों के साये में,
मन का मचलन कम होता है।1।
तेरे सम्मुख मेरी सारी,
संवेदना सिमट आती है।
तुमसे कह लेने से मेरी
सारी पीड़ा कट जाती है।
तुम जो अपना कह देते हो,
मन का विकलन कम होता है।2।
सम्बन्धों में जोड़ घटाना,
गुणा भाग का ज्ञान नहीं है।
निश्छल मन से मैं जुड़ता हूँ,
हानि लाभ का भान नहीं है।
तुम मुझको अपना लेते हो,
मन का विघटन कम होता है।3।
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