राधे-राधे

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prerana

यही नाम दिया था,पर क्या मालूम था कि जो नाम उन्हें दिया बस वही नाम उनके मुख से निकलेगा।
लगता है मानो कल की ही बात है। पास में ग्वालियर से एक परिवार रहने आया था। तीन बच्चों की पढ़ाई के लिए वो पति से दूर इंदौर में बच्चों के साथ फ्लैट में रहती थी। पड़ोसी
शहर की होने की वजह से कम समय में घुल-मिल गई। उम्र 50,पर पति का प्यार ऐसा मानो नया। दिन में हर पहर फ़ोन। रोज़ जब मेरे साथ होती थी शाम में उनका फ़ोन आता,बोलते -राधे-राधे। हम उन्हें रोज़ चिढ़ाते- ‘आ गया राधे-राधे का फ़ोन’। मैंने उनका नाम ही राधे-राधे रख दिया था । दो साल बाद जब वो गई ,तो इन्हीं दो सालो राधे-राधे से सिर्फ दो बार मिली,पर उनकी छवि ज़हन में इतनी उतरी,लगा बरसों से जानती हूँ। हँसमुख,बड़बोले और मज़ाकिया थे वो। जब वो घर छोड़कर गए,लगा कोई बहुत करीबी जा रहे हैं। उनके जाने के बाद हम फ़ोन पर सम्पर्क में रहे। अचानक एक दिन उनकी पत्नी का फ़ोन आया। अब कभी राधे-राधे से मज़ाक नही कर सकूंगी। पूछने पर मालूम चला,किसी शादी से लौटते समय उन्हें पैरालिसिस और ब्रेन ट्यूमर का अटैक आ गया। बहुत इलाज,ऑपरेशन,थैरेपी करवाई पर कोई असर नही हुआ। याददाश्त भी थोड़ी जाती रही। मीरा भाभी की मेहनत और थैरेपी की वजह से आज वो फ़ोन पर सिर्फ राधे-राधे बोल पाते हैं। भगवान भी कभी अजब खेल खेलता है।
जो खुशियाँ बाँटते हैं,उन्हीं की खुशियों में कभी किसी की नज़र लग जाती है। उम्मीद पर ही दुनिया कायम है। शायद वो कभी हमें फ़ोन पर राधे-राधे की जगह हमारा नाम लेकर पुकारें…।

                                                                                     #प्रेरणा सेंद्रे 

परिचय: में रहती हैं। आपकी शिक्षा एमएससी और बीएड(उ.प्र.) है। साथ ही योग का कोर्स(म.प्र.) भी किया है। आप शौकियाना लेखन करती हैं। लेखन के लिए भोपाल में सम्मानित हो चुकी हैं। वर्तमान में योग शिक्षिका के पद पर कार्यरत हैं।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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