आता है ऋतुराज जब,चले प्रीत की रीत।
तरुवर पत्ते दान से, निभे धरा-तरु प्रीत।
निभे धरा-तरु प्रीत,विहग चहके मनहरषे।
रीत प्रीत मनुहार, घटा बन उमड़े बरसे।
शर्मा बाबू लाल, सभी को मदन सुहाता।
जीव जगत मदमस्त,बसंती मौसम आता।
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भँवरा तो पागल हुआ, देख गुलाबी फूल।
कोयल तितली बावरी, चाह प्रीत, सब भूल।
चाह प्रीत,सब भूल,नारि-नर सब मन महके।
चाहे पुष्प पराग, काम हित खग मृग बहके।
शर्मा बाबू लाल, मदन हित हर मन सँवरा।
विरह-मिलन के गीत, सुने सब गाता भँवरा।
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चाहे भँवरा पुष्परस, मधुमक्खी मकरंद।
सबकी अपनी चाह है, हे बादल मतिमंद।
हे बादल मतिमंद, बरस मत खारे सागर।
रीत प्रीत की ढूँढ, धरा मरु खाली गागर।
बासंती मन *लाल*,भरो मत विरहा आहें।
कर मधुकर सी प्रीत, चकोरी चंदा चाहे।
नाम– बाबू लाल शर्मा
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः