बच्चे ही तो युवा बनते हैं और युवा ही तो भारत का भविष्य है।और आप सोच सकते हैं कि भारत का भविष्य जब सही मार्गदर्शन ना पाए तो भारत की अवस्था क्या हो सकती है ? यह सोचने वाली बात है यह आपके सामने एक प्रश्न खड़ा करता है ? आज की स्थिति और परिस्थिति को देखते हुए मैं कह सकता हूं कि आज शिक्षा एक व्यापार का माध्यम बन गई है। हर कोई शिक्षा से जुड़कर सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना चाहता है। सभी ऐसे नहीं हैं परंतु लगभग सभी है।
बाजार और भूमंडलीकरण के इस दौर में ऐसा देखना लाजमी है। हर स्थिति बुरी नहीं है उन स्थितियों में रह जाना बुरी आदत है। कहीं sc-st तो कहीं चापलूसी हर जगह अलग-अलग परिस्थिति देखने को मिल रही है कई काबिल इंसान इधर उधर दरबदर ठोकरें खा रहे हैं और जो जिस काबिल नहीं उसे ऐसे पद पर बिठा दिया गया है। मैं सीधा-सीधा कह सकता हूं नाकाबिल को काबिल बना दिया गया है।
आज के स्कूल और विद्यालय से बहुत ही बेहतर होती थी गुरुकुल की शिक्षा परंपरा। जैसा कि आज स्कूल में देखने को मिलता है खासकर नर्सरी स्कूल के बच्चों में कि उन लोगों के खेलने के दिनों को नष्ट करके उनके पीठ पर गधे जैसा बोझ डाल दिया जाता है। बच्चो को भी लगता है कि वो एक बंधन में बंधे हुए हैं, उनके सुबह से लेकर शाम तक के समय को निश्चित कर दिया जाता है। फिर वह एक घुटन जैसा महसूस करने लगते हैं उनके विचारों को सीमित कर दिया जाता है। मेरा मानना है कि बच्चों में खासकर कि किताबों की संख्या कम हो उन्हें खेलने कूदने ज्यादा दिया जाए जिससे वह स्वस्थ भी रहे, तंदुरुस्त भी रहे और एक बोझ महसूस ना करें खेल-खेल में बच्चे कुछ बेहतर सीखें।
आजकल भरपूर मात्रा में अंग्रेजी माध्यम के इंस्टीट्यूट स्कूल, एकेडमी इत्यादि खुल रहे हैं जिसमें आप उनके सिलेबस देख ले तो ही पता चल जाएगा की उस विद्यालय में क्या पढ़ाया जाएगा और बच्चे कैसे होने वाले हैं मैंने कई अंग्रेजी माध्यम के बच्चे को देखा है मैं सभी अंग्रेजी माध्यम के बच्चे की बात नहीं कर रहा इस बात पर ध्यान दीजिएगा कि बच्चे स्कूल लाइफ में ही शराब पीने लगते हैं, सिगरेट पीने लगते हैं और भी कई तरह के बुरी लत में शामिल हो जाते हैं तो यह जो सीखते हैं वह क्या घर से सीखते हैं? मेरा मानना है नहीं वह उसी पाश्चात्य परंपरा के तहत सीखते हैं जो बिल्कुल गलत है।
ऐसा हिंदी माध्यम में बहुत ही कम देखने को मिलता है खैर जो भी हो यह बात है संस्कार की । अंग्रेजी माध्यम करके स्कूल तो बड़े-बड़े कमाई कर लेते हैं परंतु बच्चों का भविष्य चौपट हो जाता है।
सरकारी विद्यालय तो फिर भी ठीक है परंतु अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में खासकर यह देखा जाता है कि बच्चों को सिर्फ और सिर्फ रतंट विद्या पर फोकस कराया जाता है जिससे बच्चे तो तोते की तरह रट कर उनसे जो प्रश्न पूछा जाता है उनका उत्तर तो लिख देते हैं परंतु जब वह किसी परीक्षा का सामना करने बैठते हैं तो देखा जाता है कि वह उस विषय का प्रैक्टिकल नॉलेज बिल्कुल भी नहीं रखते हैं या उसे उस प्रश्न का समाधान ही नहीं बताया गया। जो आने वाले समाज के लिए बहुत ही घातक सिद्ध होगा। आज के स्कूल और विद्यालय वाले बच्चों को अगर देख लिया जाए तो उसमें नकारात्मक चीजें ज्यादा भर गई है यह भी जो समाज के लिए बहुत ही घातक है।
हालांकि गुरुकुल में बच्चों को उनकी क्षमता अनुसार खेलने को, सीखने को , और वह जिस काबिल है उसे और बेहतर बनाने को शिक्षा दी जाती थी साथ ही साथ उनका स्वास्थ्य का भी भरपूर ख्याल रखा जाता था । गुरुकुल में हर तरह की विद्या को बच्चों में दिया जाता था बल्कि उन्हें उनकी काबिलियत के अनुसार उनकी हर विद्या में दक्ष बनाया जाता था वह गुरुकुल में रहकर एक साथ कई कई गुणों को सीखते थे बड़ों की आज्ञा मानना, बड़ों की आज्ञा मानना तो उनका परम कर्तव्य था। लक्ष्य साधना, दूर की सोचना, हर प्रश्नों को विभिन्न तरीकों से समाधान करना, जीवन के विपरीत परिस्थितियों का डटकर सामना करना। हर परिस्थिति में सकारात्मक विचार रखना। और हर कार्यों को अनुशासन में रहकर करना।
जरा हम देखते हैं कि आज का मॉडर्न एजुकेशन पहले की गुरुकुल परंपरा या शिक्षा की तुलना में बहुत ही कमजोर साबित होती है जो समाज के हित में नहीं है इसलिए पहले जैसी गुरुकुल परंपरा को फिर से अपनाना चाहिए जिससे भारत का भविष्य उज्जवल हो सके सुदृढ़ हो सके और सकारात्मक विचार रख सके।
मुझे लगता है भारत को अगर विश्व गुरु बनना है तो ऐसी परंपरा को सर्वप्रथम अपनाना होगा।
संतोष कुमार वर्मा ‘ कविराज, कोलकाता
पश्चिम बंगाल