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बेटी कुमकुम है, रोली है,चन्दन की महक है,
बाबुल के आँगन में खुशियों की चहक है।
बेटी जहाँ भी हो, मेला सा लगता है,
ससुराल की लक्ष्मी है, घुँघरू की खनक है।।
बेटी बाबा की फिक्र, माँ का गुरुर है,
भाई का अपनापा, पूरे घर का नूर है।
बेटी साहस है, शक्ति है, सृष्टि है, भक्ति है,
बेटी समाज का आईना है, कोहिनूर है।।
बेटी हर क्षेत्र में विभूति है, समर्थ है,
फिर भी असुरक्षा कोख की तदर्थ है।
यदि चाहते हो उन्नति के शिखर को चूमना,
तो बेटी को बचाइए, अन्यथा सब व्यर्थ है।।
#पायल शर्मा,डूंगरपुर
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