बायो गैस ने लोगों की ज़िन्दगी को बेहतर बना दिया है. देश के अनेक गांवों में अब महिलाएं लकड़ी के चूल्हे पर खाना नहीं पकातीं, क्योंकि उनकी रसोई में अब बायो गैस पहुंच चुकी है. मध्य प्रदेश को ही लें. यहां के शहडोल ज़िले के कई गांवों में अब चूल्हे बायो गैस से ही जल रहे हैं. जंगल को बचाने के लिए सरकार ने आदिवासी बहुल इस ज़िले के गांवों में जागरुकता मुहिम शुरू की. नतीजतन, गांव महरोई समेत कई गांवों में बायो गैस संयंत्र लगाए गए और फिर बायो गैस चूल्हे जलने लगे. अब आदिवासी महिलाओं को ईंधन की लड़की लेने के लिए जंगल में नहीं जाना पड़ता, जिससे वे काफ़ी ख़ुश हैं. उत्तर प्रदेश के लखनऊ ज़िले के गांव बिजनौर के जय सिंह को बायो गैस संयंत्र से दिन-रात बिजली मिल रही है, जिससे वह अपनी डेयरी की सभी मशीनें चलाते हैं. उनका कहना है कि उनका 140 घन मीटर का गैस संयंत्र है, जिसे लगवाने में तक़रीबन 22 लाख रुपये ख़र्च हुए. उनके पास 150 पशु हैं, जिनसे रोज़ लगभग एक हज़ार लीटर दूध मिलता है. साथ ही रोज़ लगभग 1500 किलो गोबर मिलता है. इस गोबर को वह बिजली बनाने में इस्तेमाल करते हैं. बायो गैस संयंत्र से मिली गैस से 30 किलोवॉट का जेनरेटर चलाकर 24 घंटे बिजली पैदा करते हैं. अपने संयंत्र से बनाई गई बिजली से ही वह पशुओं का दूध दुहने वाली स्वचालित मिल्किंग मशीन, पशुओं के चारा काटने की मशीन और दूध की पैकिंग करने की मशीन को संचालित करते हैं. इसी बिजली से उन्होंने गेहूं पीसने की बड़ी मशीन भी लगा रखी है, जिसमें पूरे गांव का गेहूं पीसा जाता है. इसके अलावा उन्हें खाद भी मिल रही है. इसमें कोई दो राय नहीं कि बायो गैस संयंत्र किसानों और ग्रामीणों के लिए वरदान साबित हो रहे हैं. इनसे जहां रसोईघरों को ईंधन मिल रहा है, बिजली के रूप में रौशनी मिल रही है, वहीं खेतों को खाद भी मिल रही है. आज देशभर में छोटे स्तर पर तक़रीबन 33 लाख बायो गैस संयंत्र काम कर रहे हैं.
राजस्थान के डूंगरपुर ज़िले के की सीमलवाड़ा भेमईगांव में महिलाएं बायो गैस के चूल्हे पर ही खाना बनाती हैं. गांव के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन है. इसीलिए हर घर में पशु हैं. पहले महिलाएं गोबर के उपले बनाकर चूल्हे में जलाती थीं. जहां उपले बनाने में उन्हें काफ़ी मेहनत करनी पड़ती थी, वहीं इन्हें चूल्हें में जलाने पर धुआं भी होता था. नब्बे की दहाई में गांव में बायो गैस क्रांति आई. ज़िला परिषद के ज़रिये गांव में बायो गैस संयंत्र लगाए गए. ग्रामीणों का कहना है कि लकड़ी और एलपीजी के मुक़ाबले बायो गैस बेहद सस्ती है. इससे उन्हें अच्छी खाद भी मिल रही है. मध्यप्रदेश के खंडवा ज़िले के ग्राम बड़गांव पिपलौद ऐड़ा का युवक शुभम बायो गैस से आटा चक्की चला रहा है.
कुछ महीने पहले दुग्ध संघ ने ग्राम बड़गांव पिपलौद में डेयरी समिति बनाई गई. इसमें 20 सदस्यों को नर्मदा झाबुआ ग्रामीण बैंक के माध्यम से दुग्ध उत्पादन के लिए गाय दी गई हैं. इसी समिति के सदस्य आत्मराम परसराम तिरोले ने भी चार गाय लेकर दूध उत्पादन शुरू किया. इन गायों से रोज़ काफ़ी गोबर जमा हो जाता था. उनके बेटे शुभम ने बायो गैस संयंत्र लगवा लिया, जिससे उन्हें रसोई के लिए बायो गैस मिलने लगी. फिर उसने कबाड़े में से एक डीज़ल इंजन और आटा चक्की ख़रीदी और इन्हें ठीक करा लिया. अब वह बायो गैस से इंजन चला रहा है और इस इंजन से आटा चक्की चल रही है. बायो गैस से ही वह चारा काटने की मशीन भी चला रहा है.
पिछ्ले जून माह में दिल्ली जल बोर्ड ने कोंडली में सीवरेज शोधन संयंत्र में बायोगैस से बिजली का उत्पादन शुरू कर दिया है. सीवरेज के शोधन से निकलने वाली बायो गैस का इस्तेमाल अब बिजली उत्पादन के लिए किया जाएगा. इससे दिल्ली जल बोर्ड को अपने सालाना 20 करोड़ रुपये के बिजली के बिलों से राहत मिलेगी. बायो गैस से बिजली उत्पादन करने की इस प्रक्रिया को मॉडल के तौर पर शुरू किया गया है. अगर यह प्रयोग कामयाब रहता है, तो आने वाले वक़्त में जल बोर्ड अपने सभी सीवरेज शोधन संयंत्रों में बायो गैस से बिजली उत्पादन का काम शुरू करेगा. यह ईको फ्रेंडली तरीक़ा प्रदूषण के स्तर में भी कमी लाएगा. कोंडली में बायो गैस से 10 हज़ार किलोवाट बिजली पैदा की जा रही है. इससे जल बोर्ड अपनी बिजली की 35 फ़ीसद ज़रूरत पूरी कर पा रहा है.
ग़ौरतलब है कि देश में बायो गैस संयंत्रों को बढ़ावा देने के लिए साल 1981-82 में राष्ट्रीय बायो गैस परियोजना शुरू की गई. यह अपारंपरिक ऊर्जा स्रोत विभाग की महत्वपूर्ण परियोजना है. इसका मक़सद ग्रामीण क्षेत्रों में अपारंपरिक ऊर्जा के नये विकल्पों को बढ़ावा देकर पर्यावरण की सुरक्षा करना है. इसके अलावा बायो गैस संयंत्र की स्थापना में सहायता देकर ऊर्जा संरक्षण पर ज़ोर देना, ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को धुएं से होने वाली बीमारियों से बचाना और उच्च कोटि की गोबर खाद के उत्पादन में बढ़ोतरी कर कृषि को बढ़ावा देना भी इसके उद्देश्यों में शामिल है. इसके कार्यक्रम के तहत घरेलू और सामुदायिक दो प्रकार के संयंत्रों की स्थापना की जाती है. यह कार्यक्रम राज्य सरकारों और केन्द्रशासित प्रदेशों के प्रशासनों, राज्यों के निगमित व पंजीकृत निकायों आदि द्वारा चलाया जा रहा है. ग़ैर सरकारी संगठन भी इसके क्रियान्वयन में मदद कर रहे हैं. वाणिज्यिक और सहकारी बैंक बायो गैस संयंत्रों की स्थापना के लिए क़र्ज़ मुहैया करा रहे हैं. जिन ग्रामीणों के पास चार से ज़्यादा बड़े पशु जैसे भैंस, गाय या बैल हों, इस संयंत्र के लिए आवेदन कर सकते हैं. इसके लिए इच्छुक व्यक्ति को बायो गैस संयंत्र लगाने का प्रार्थना पत्र ग्राम पंचायत विकास अधिकारी/ खंड विकास अधिकारी को पूरे विवरण के साथ देना होता है.
बायो गैस पर्यावरण के अनुकूल है और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए बहुत उपयोगी है. बायो गैस के इस्तेमाल से लकड़ी की बचत होती है और पेड़ कटने से बच जाते हैं. महिलाओं को चूल्हे के धुएं से निजात मिल जाती है, जिससे उनकी सेहत ठीक रहती है. बायो गैस के उत्पादन के लिए ज़रूरी कच्चे माल यानी गोबर आदि की आपूर्ति गांवों से ही पूरी हो जाती है.
विशेषज्ञों के मुताबिक़ बायो गैस संयंत्र लगवाते वक़्त सावधानी बरतनी चाहिए. बायो गैस से छोटे से छोटा प्लांट लगाने के लिए कम से कम दो या तीन पशु होने चाहिए. गैस संयंत्र का आकार गोबर की दैनिक मिलने वाली मात्रा को ध्यान में रखकर करना चाहिए. बायो गैस संयंत्र गैस इस्तेमाल करने की जगह के नज़दीक स्थापित करना चाहिए, ताकि गैस अच्छे दबाव पर मिलती रहे. बायो गैस संयंत्र लगवाने के लिए निर्माण सामग्री जैसे सीमेंट और ईंटें बढ़िया क़िस्म की होनी चाहिए. छत से किसी तरह की लीकेज नहीं होनी चाहिए. बायो गैस संयंत्र किसी प्रशिक्षित व्यक्ति की देखरेख में ही बनवाना चाहिए. यह भी ध्यान रहे कि बायो गैस संयंत्र की 15 मीटर की परिधि में कोई पेयजल स्रोत न हो. गैस पाइप और अन्य उपकरणों की समय-समय पर जांच करते रहना चाहिए. गोबर की सूखी परत बनने से रोकने के लिए गोबर डालने और गोबर निकलने का पाइप ढका रहना चाहिए. यह संयंत्र निर्देशानुसार चलाने से वर्षों तक चल सकते हैं, जिससे गैस और खाद दोनों काफ़ी मात्रा में उपलब्ध होते हैं.
बायो गैस संयंत्र की स्थापना के बाद इसे गोबर और पानी के घोल से भर दिया जाता है. इसके बाद गैस की निकासी का पाइप बंद करके 10-15 दिन छोड़ दिया जाता है. जब गोबर की निकासी वाली जगह से गोबर बाहर आना शुरू हो जाता है, तो हर रोज़ संयंत्र में ताज़ा गोबर सही मात्रा में डाला जाता है. इस तरह बायो गैस और खाद तैयार होती है. बायो गैस संयंत्र में गोबर की क्रिया के बाद 25 फ़ीसद ठोस पदार्थ गैस के रूप में बदल जाता है और 75 फ़ीसद खाद बन जाता है. यह खाद खेती के लिए बहुत उपयोगी है. इसमें नाइट्रोजन डेढ़ से से दो फ़ीसद फ़ास्फ़ोरस एक और पोटाश भी एक फ़ीसद तक होता है. बायो गैस संयंत्रों से मिलने वाली गैसों में 55 से 66 फ़ीसद मीथेन, 35 से 40 फ़ीसद कार्बनडाई ऒक्साइड और अन्य गैसें होती हैं. ये खाद खेतों के लिए बेहद उपयोगी है. इससे उत्पादन में काफ़ी बढ़ोतरी होती है.
कोड़े-कर्कट से भी बायो गैस बनाई जा सकती है. देशभर की सब्ज़ी मंडियों में हर रोज़ बहुत-सा कूड़ा जमा हो जाता है, जिनमें फल-सब्ज़ियों के पत्ते, डंठल और ख़राब फल- सब्ज़ियां शामिल होती हैं. ज़्यादातर मंडियों में ये कचरा कई-कई दिन तक पड़ा सड़ता रहता है. अगर इनका इस्तेमाल बायो गैस बनाने में किया जाए, तो इससे कई फ़ायदे होंगे. इससे जहां कचरे से निजात मिलेगी, वहीं बायो गैस और खाद भी प्राप्त होगी. पंजाब कांग्रेस कमेटी के सचिव मंजीत सिंह सरोआ ने पंजाब सरकार को सलाह दी है कि वह हर सब्ज़ी मंडी के समीप बायोगैस प्लांट लगाए, जिससे पैदा हुई बायो गैस की सप्लाई मंडी की दुकानों या आसपास के रिहायशी इलाक़ों में की जा सके.
काबिले-ग़ौर है कि ऊर्जा के पेट्रोलियम, कोयला जैसे पारंपरिक स्रोत सीमित हैं. इसलिए सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, और जैव-ऊर्जा जैसे ग़ैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. बायो गैस संयंत्र के अनेक फ़ायदे हैं. इसे लगाने से किसानों को ईंधन और खाद दोनों की बचत होती है. बेरोज़गार युवा बायो गैस संयंत्र लगाकर स्वरोज़गार अर्जित कर सकते हैं. इससे डेयरी उद्योग को बढ़ावा मिलेगा, दूध बढ़ेगा और आमदनी बढ़ेगी. है न बायो गैस संयंत्र फ़ायदे का सौदा.
#फ़िरदौस ख़ान
(लेखिका स्टार न्यूज़ एजेंसी में संपादक हैं)