प्रभात का गीत

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kailash

पावन प्रकृति ने प्रातः में, पुनः जगाए प्राण,
कोयल के कलरव ने छेड़ी,मधुर गीत की तान।

छटा बिखेरी धरती माँ ने,आँचल अपना लहराया,
दूर किया सूरज ने आकर,अंधियारा था गहराया।

लाल चुनर ओढ़ा दिनकर,करता माँ का सम्मान,
पावन प्रकृति ने प्रातः में……।

नया सवेरा कई नई,आशाएँ लेकर आया,
सच करने अपने सपनों को,और एक दिन पाया।

करें कर्म सुनकर अपने,अंतर्मन का आह्वान,
पावन प्रकृति ने प्रातः में….।

                 #कैलाश भावसार

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