लगा है रोग सबको

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krishn
तिरे लब पर हमेशा ही कोई रहता बहाना था,
तुझे भी है मुहब्बत यह  मुझे यूँ आज़माना था।
मुझे तुम मिल गए मानो सभी कुछ मिल गया मुझको,
तुम्हारा प्यार ही मेरे लिए जैसे खज़ाना था।
हमेशा की तरह बारिश में मिलने रोज़ आता था,
मुहब्बत का यक़ीं हर रोज़ यूँ तुमको दिलाना था।
जले हों लाख दिल सबके,मुहब्बत देखकर  मेरी,
मुझे कुछ ग़म नहीं था प्यार बस तुझ पर लुटाना था।
हवा से उड़ गए लाखों घरौंदे हम गरीबों के,
कभी जिन में हमारा खूबसूरत आशियाना था।
लगा है रोग सबको प्रेम का,जिसका मदावा क्या,
मगर यह ‘राज’ सबके सामने भी तो जताना था॥
(मदावा-इलाज)
#कृष्ण कुमार सैनी ‘राज’

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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