#अविनाश तिवारीजांजगीर चाम्पा(बिहार)
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कुछ कहि कुछ अनकही बात
रह गई है लालसा।
संपूरित होते सपने अधूरे
रह गई है लालसा।।
छूँ लूं अपरिमित गगन और मुठ्ठी भर आकाश,
किन्तु
रह गई है लालसा।
दीप बन हरने चली तमस
घनघोर रात की
स्वर्णिम सबेरा आएगा,
रह गई है लालसा।।
वट वृक्ष सा परिवार
खण्डित रिश्ते कुटित व्यवहार
रह गई है लालसा।
घुटती सांसे उजड़ता कानन
क्रांकीट का विस्तार फैलता
एक जाल
रह गई है लालसा
घटता पानी उछलती हयाएँ
उन्मुक्त बाजार बिकता ईमान
रह गई है लालसा।
सपनों के पूरे होने की
बातों के पूरे होने की
रिश्तों को सहेजने की
अंधेरा दूर करने की
उन्मुक्त सांस लेने की
है अधूरी लालसा
रह गई है लालसा
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