ओ धरती के फरिश्ते
वाह री तेरी खुदाई
हर कहीं कत्लेआम मचा है
मर रहा है आदमी
सिसक रही हैं माँ की गोदी
तड़फ रहे है नन्हें बच्चे
टूट रही है सुहागिनों की चूड़ियां
भूख से बिलबिला रहा है आदमी
हर तरफ बस मातम पसरा है यहां मातम पसरा है यहां
फिर भी
ओ धरती के फरिश्ते
यह तेरा कैसा सम्मोहन है
कि पत्थरों को तराशते
और तेरा रूप देते हैं
यह पत्थर दिल
मरती हुई मानवता पर
अट्टहास करती सत्तायें
अपने खुदा होने का
हर प्रमाण
प्रमाणित करती हैं
कैसी है ये
स्वलालसा
कैसी है ये
उत्कंठा
कैसा है ये
न्याय
ढूंढती है यह
कायनात
सारी तुझे उन
बेजान से चट्टानों के
अभिलेखों में
इतिहास के जर्जर भवनों में
शायद तू भी
अपने होने की
पुष्टि चाहता है
तभी तो उन पत्थर दिलों को को
अपना
वरदान देता है
और मानवता के
चीत्कार
पर अपनी मौन
स्वीकृति देता है।
स्मिता जैन