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देह दीपक बनी प्राण बाती हुए,
द्वार पर हे प्रिये तुम सजा लो मुझे।
बुझ न जाऊँ कहीं,ग़म के तूफान से,
अपने आँचल से ढंक लो छुपा लो मुझे॥
है सुखों का उजाला अभी भाग्य में,
बात मुझको बतानी है संसार को…
ये मुहब्बत अगर मुझको मिलती रहे,
दूर कर दूँगा मैं दुःख के अँधियार को…
साँस की लौ मिरी जगमगाती रहे,
आप इक बार दिल से लगा लो मुझे।
देह दीपक बनी प्राण….॥
बस अँधेरे रहे हमसफर उम्र भर,
राह इनको सदा ही दिखाता रहा…
एक दिन हम मिलेंगें, इसी आस में,
मैं स्वयं को विरह में जलाता रहा…
आँधियों से कभी हार मानी नहीं,
आँसूओं से मगर तुम बचा लो मुझे।
देह दीपक बनी प्राण….॥
चाँद तारे निशा में कहीं छुप गए,
रात सूरज निकलने पे प्रतिबंध है…
इसलिए आज तक रात-दिन मैं जला,
प्रीति का रीति से एक अनुबंध है…
हो पराजित न अब प्रीति पावन प्रिये,
पास आ जाओ तुम या बुला लो मुझे।
देह दीपक बनी प्राण….॥
#इन्द्रपाल सिंह
परिचय : इन्द्रपाल सिंह पिता मेम्बर सिंह दिगरौता(आगरा,उत्तर प्रदेश) में निवास करते हैं। 1992 में जन्मे श्री सिंह ने परास्नातक की शिक्षा पाई है। अब तक प्रकाशित पुस्तकों में ‘शब्दों के रंग’ और ‘सत्यम प्रभात( साझा काव्य संग्रह)’ प्रमुख हैं।म.प्र. में आप पुलिस विभाग में हैं।
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बहुत खूब, भावों की सुंदर अभिव्यक्ति,