मुलाकात” भाग-3

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omprakash lovanshi
मैं उसके बताये पते पर टाइम से पहले ही पहुँच गया था,  मिलने की ललक जो थी !  आसमान में पक्षी उड़ रहे थे और पानी की लहरें हिलोरे ले रही थी जैसे बाँहे फैलाकर प्रीतम से मिलने को आतुर हो!  KST के किनारे कबूतरों का झुंड और आसमान में  परिंदे उड रहे थे बहुत ही मनोरम दृश्य था!  मैं बस पक्षियों की चहल कदमी देख रहा था!  अचानक कब वह मेरे पीछे आकर खड़ी हो गई?  मुझे पता ही नहीं लगा और मैं मन ही मन खुश हो  रहा था ! जैसे मैंने खड़ा होकर पीछे देखा तो वो मुझे वहीं पर मुस्कुराती हुई नजर आई!  मैने पूछा-कब आये ? उसने  मुस्कुराते हुए कहा- बस अभी आई हूँ,  आपको देख रही थी ! आओ बैठो,  मैंने कहा ! फिर हम दोनों KST के किनारे लगे हुए बेंच पर बैठ गए और यूं ही चलती हुई लहरों को , उड़ते हुए पक्षियों को निहारने लगे और इसी बीच  हमारी बातें भी शुरू हुई! दिल करने लगा की काश हम भी  पक्षियों के साथ साथ उड़ते !  सूरज भी धीरे- धीरे ढल रहा था और किशोर सागर के आसपास का दृश्य और मनोरम होता जा रहा था!  देखने वालों की भीड़ भी धीरे-धीरे जमा होने लगी थी और हम बातों में इतने मशगूल हो गए  कि पता ही नहीं चला कब सूरज ढल गया और किशोर सागर के पास की लाइट पानी की लहरों को रोशनी से सजा रही थी ! हम वहां से खड़े हुए और धीरे-धीरे आगे बढने लगे! आज हमारी दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में भी बढ़ रही थी! लेकिन ना वो कह पा रही थी और ना ही मैं ! थोड़ी देर चहल कदमी करने के बाद मैंने कहा अब चलते हैं देर हो रही हैं !  उसने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया और मेरी आंखों में आंखें डाल कर देखने लगी कि कुछ पल तो मेरे सहसा पलक ही रुक गए थे मेरे ! आज पहली बार एक दुजे के नैनों मे खो गये , मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या होगा ? मैंने फिर से कहा – चलो अब घर चलते हैं,  लेकिन उसकी आंखें कुछ और ही कह रही थी! ! !
#ओम प्रकाश लववंशी “संगम”

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