डटे हुए दिन रात दीवाने
नित देश मे खुशहाली हो।
देखो साथी !उनके घर भी
खुशियो भरी दिवाली हो।
घर नही है, है देवालय वो
पूजा की थाली रख आना।
एक दिया उम्मीदों वाला
चौखट पर उनके धर आना।
खेला कूदा वो जिस आँगन
झोली उस माटी से भर लाना।
लड़ रहा सीमा पर जो
कुलदीपक ,तूफानो से।
उस घर मे शत दीप जले
रोशनी से न घर खाली हो।
देखो साथी !उनके घर भी
खुशियो भरी दिवाली हो।
बैठी होगी गुड़िया रानी
पापा चुनरी लाएंगे
मुन्ना कहता होगा माँ से
पर वो घर कब आएंगे?
बूढ़ी माँ भी थामें होगी
ठंडी,लम्बी साँसे जबरन।
टाल रहे होंगे बाबा भी
मोतियाबिंद का ऑपरेशन।
मेहदी में कही प्रीत पले
बिंदिया चमकती लाली हो।
देखो साथी!उनके घर भी
खुशियो भरी दिवाली हो।
#विजयलक्ष्मी जांगिड़
परिचय : विजयलक्ष्मी जांगिड़ जयपुर(राजस्थान)में रहती हैं और पेशे से हिन्दी भाषा की शिक्षिका हैं। कैनवास पर बिखरे रंग आपकी प्रकाशित पुस्तक है। राजस्थान के अनेक समाचार पत्रों में आपके आलेख प्रकाशित होते रहते हैं। गत ४ वर्ष से आपकी कहानियां भी प्रकाशित हो रही है। एक प्रकाशन की दो पुस्तकों में ४ कविताओं को सचित्र स्थान मिलना आपकी उपलब्धि है। आपकी यही अभिलाषा है कि,लेखनी से हिन्दी को और बढ़ावा मिले।