#साझा_संग्रह~ काव्य मञ्जरी
#सम्पादक~#सुरेश_सौरभ
#प्रकाशक~#नमन_प्रकाशन,लखनऊ
#समीक्षक~#संदीप_सरस(
लखीमपुर जनपद के चर्चित साहित्यकार सुरेश सौरभ के समर्थ सम्पादन में एक बार फिर लगभग साठ रचनाकारों की रचनाओं का संकलन काव्य मञ्जरी के रूप में प्रकाशित होकर पाठको के सम्मुख है।
सबसे बड़ी बात यह है संकलन में उन्होंने जहां एक ओर वरिष्ठ साहित्यकारों की रचनाओं को सम्मानित स्थान दिया वहीं युवा संभावनाशील कलमकारों को भी प्रोत्साहन हेतु छापा है।यह संतुलन किसी भी संकलन को उद्देश्यपरक साबित कर देता है।
सुरेश सौरभ इससे पहले भी इस प्रकार के प्रयोग करते रहे हैं।इसके पहले भी उन्होंनेसाझा संकलनों की श्रृंखला में ‘खीरी जनपद के कवि’ 2014 में ‘उत्तर प्रदेश के 51कवि’ 2015 में तथा’100 कवि’ 2016 में संपादित कर चुके हैं।
संकलन के आरंभ में अपने संपादकीय में सुरेश सौरभ कहते हैं संपादक वही सफल होता है।
जो पाठक की नब्ज़ पकड़ ले, उसके जज्बात पकड़ ले। इस लिहाज से डॉक्टर और संपादक में बहुत ज्यादा फर्क नहीं होता। सच ही कहा है सुरेश जी ने।
निश्चित रूप से संपादन एक बेहद दुरूह कार्य होता है। आप को पाठकों की रुचि के अनुसार उनके अपेक्षाओं के अनुसार रचनाओं का चयन करना होता। यदि रचना पाठकों अनुरूप ना जन जनसरोकारों से सम्बद्ध न हुई तो स्तरीयता कितनी भी हो संकलन अक्सर नकार दिए जाते हैं।इस लिहाज से सुरेश सौरभ एक सजग और सशक्त संपादक साबित होते हैं।
सुरेश सौरभ की स्वयं की रचनाएं समय-समय पर देश के तमाम स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं।और पुस्तकाकार रूप में उनकी लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित रूप में पाठकों के सम्मुख आ चुकी हैं।आपका एक उपन्यास कवयित्री बहुत जल्द छप कर आने वाला है।तमाम सम्मान, पुरस्कार आप अपने खाते में दर्ज करा चुके हैं।
यह तो बात हुई संपादक सुरेश सौरभ जी अब बात करते हैं पुनः वापस लौटते हैं काव्य संकलन काव्य मञ्जरी पर।अक्सर हमें मंचीय चकाचौंध बेहद प्रभावित करती है लेकिन उस मंच की साज सज्जा, विषय वस्तु, प्रस्तुति और संयोजन से जुड़ी तमाम मुश्किलों से हम अनभिज्ञ रह जाते हैं।
बड़े रचनाकारों से रचनाएं कलेक्ट करना, नवोदित रचनाकारों की प्राप्त रचनाएं प्रकाशन के लायक बनाना संपादक के सामने एक मुश्किल चुनौती होती है। मात्र चंद रचनाओं को एकत्र करना ही संकलन का स्वरूप नहीं गढ़ता। इसके पीछे तमाम श्रमशील समर्पण और सशक्त संपादन की महती भूमिका रहती है। और इस भूमिका में पूरी तरह खरे उतरने के लिए सुरेश सौरभ बधाई के पात्र हैं
काव्य मञ्जरी में एक और जहां कुँअर बेचैन,अशोक अंजुम,इलियास चिश्ती,उदय प्रताप सिंह, गौरी शंकर विनम्र, चंद्रसेन विराट, घमंडीलाल अग्रवाल, डॉक्टर सुरेश उजाला, रोहिताश्व अस्थाना, प्रदीप चौबे, यश मालवीय, वाहिद अली वाहिद जैसे वरिष्ठ रचनाकारों की उपस्थिति संकलन को गरिमा सौंपती हैं।
वही दूसरी ओर रजनीसिंह,पुरुषोत्तम यकीन, धर्मेंद्र गुप्त साहिल, डॉक्टर सोनरूपा विशाल, चाँद शेरी,डॉ मृदुला मृदु,डॉक्टर उमा कटियार,डॉ महाश्वेता,डॉ सुरेश शुक्ल,डॉक्टर निहारिका, ज्वाला प्रसाद गुप्त, संदीप सरस,अनुभूति गुप्ता,देवमणि पांडेय,श्याम किशोर बेचैन,ज्वाला प्रसाद गुप्त,छाया अग्रवाल, ओम प्रकाश श्रीवास्तव गगन, सुरेन्द्र बाजपेई जैसे रचनाकारों का जुड़ाव संकलन को स्तरीयता सौंपता है।
साथ ही युवा संभावनाशील अजय नमन, संतोष हमसफर, विनय प्रेम, सरिता नौहरिया,शिवा, सौरभ कुमार कमल, समीउल्ला समी आदि अपनी रचनाओं से प्रभावित करते हैं।
हालांकि इतने रचनाकारों के मध्य कुछ रचनाकारों या उनकी कुछ रचनाओं की चर्चा करना थोड़ा असहज लगता है फिर भी कुछ रचनाओं को उद्धत करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूं।
वरिष्ठ रचनाकार #अशोक_अंजुम के दोहे देखिए –
आरी ने घायल किये हरियाली के पांव।
कंक्रीट में दब गया होरी वाला गांव।।
धुएं धुएं ने घात दी, रोगी हुए हकीम।
असमय बुड्ढा हो गया आंगन वाला नीम।।
इसी क्रम में #इलियास_चिश्ती के चंद शेर भी उल्लेखनीय
रहे-
अभी मैं जिसके लिए खा रहा हूं नींद की गोली,
वही एक रोज मेरे वास्ते सल्फास लाएगा।
बुजुर्गों की कभी सोहबत में बैठो और फिर देखो
ये वो बातें बताते हैं जो गूगल पर नहीं मिलती।
वरिष्ठ साहित्यकार #उदय_प्रताप_सिंह जी कहते हैं-
जनतंत्र में जोंकों की कोई आस्था नहीं
क्या फायदा संशोधनों से संविधान में।
#गौरीशंकर विनम्र जी की रचना बेहद प्रासंगिक रही-
जीवन की वाटिका में तितली सी बेटियां हैं।
माता पिता के आंख की पुतली सी बेटियां हैं।
#चंद्रसेन_विराट जी को पढ़ना सदैव सा सुखद रहा-
देता है कौन दस्तकें यूं इतनी रात को
उठ खोल तो किवाड़ कहीं जिंदगी ना हो।
मैं जिंदगी में ढूंढ रहा तुमको और तुम
मेरी ग़ज़ल में खुद को कहीं ढूंढती न हो।।
वरेण्य कलमकार #यश_मालवीय जी की एक श्रेष्ठ रचना देखे-
पर्दे पर ताजा गुलाब दिन बासी बासी।
मिले डाक में गंगाजल सर पटके काशी।।
मन है जैसे सीली सीली दियासलाई।
करें फेसबुक तय, संबंधों की गहराई ।।
चर्चित कलमकार #संदीप_सरस के कविता के तेवर अलहदा थे-
सपने तो सपने होते हैं लाखों हो चाहे एकलौता,
जो सपना सच बने नहीं तो सपने का मर जाना अच्छा।
युवा हस्ताक्षर #अजय_नमन भी बेहतर रहे-
हर कलम में जुबान होती है।
आदमियत की शान होती है।
जब भी आता हूं देर से घर को,
मां मेरी परेशान होती है।
#श्याम_किशोर_बेचैन की बेचैनी भी गैरजरूरी नहीं रही-
पीढ़ी की पीढ़ी जिससे बर्बाद हो रही
उस मद्य का देश से व्यापार बंद कर दो।
मुझे विश्वास है सुरेश सौरभ के समर्थ संपादन में प्रकाशित साझा काव्य संकलन ‘काव्य मञ्जरी’ पर्याप्त चर्चा और समर्थन का हकदार है। आप इसमे रचनाओं को पढ़ें,गुनगुनाए।यही संकलन का अभीष्ट है। आशा है आने वाले दिनों में सुरेश सौरभ जी के नेतृत्व में और अच्छे साझा संकलन पाठकों के सम्मुख आएंगे।
सौरभ जी को असीम बधाई और अनंत शुभकामनाएं संप्रेषित हैं।
#सन्दीप_सरस्