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परम दयालु गुरूवर है विद्यासागर जी नाम,
आचार्य गुरूदेव को निशदिन करुं प्रणाम।
भक्तिभाव से वन्दन करता सुबह और शाम,
हम सबकी आस्था का गुरू चरण है धाम।
जय-जय मुनि महाराज शत-शत करुं प्रणामll
करते हैं हम वन्दना विद्यासागर जी महाराज,
वर्तमान के वर्धमान के चरणों में वन्दन आज।
हाथ जोड़ मस्तक झुके विनय भाव के साथ,
नमोस्तु हो मेरा तुझे रखना सिर पर हाथ।
जय-जय मुनि महाराज…ll
शरद पूर्णिमा के शुभ दिन जन्म हुआ साकार,
चन्दा ने अमृत बरसाया आनन्द हुआ अपार।
पिता मलप्पा के नन्द हो श्रीमती जी के लाल,
सदलगा नगरी में जन्मे विद्यासागर महाराजl
जय-जय मुनि महाराज…ll
मंगलमय पावन शुभ बेला में अजमेर के मैदान,
आचार्य ज्ञान सागर जी से दीक्षित हुए मुनिराज।
ज्ञान सिन्धु का आशीष मिला सब धर्मों का साथ,
अहिंसा का जय-जय घोष हुआ उठे करोड़ों हाथ।
जय-जय मुनि महाराज…ll
ज्ञानसागर जी से दीक्षा पाकर संयम व्रत को धार,
पिच्छी कमण्डल हाथ में लेकर वेश दिगम्बर धार।
विद्याधर वैरागी से विद्यासागर बनकर के मुनिवर,
सत्य,अहिंसा,धर्म के पथ पर बढ़ते गए गुरूवर।
जय-जय मुनि महाराज…ll
सत्य-अहिंसा महाकुम्भ के अग्रदूत हो आप,
गौ वंश की रक्षा का नित गुरूवर करते जाप।
`जियो और जीने दो` से दो जीव दया का दान,
`अहिंसा परमो धर्म` से जग का हो कल्याणl
जय-जय मुनि महाराज…ll
आचार्य विद्यासागर जी जिनशासन की शान,
नित्य गुरूवर देते हमको जिनवाणी का ज्ञान।
विद्यासागर जी के नाम से शक्ति मिलती अपार,
ज्ञान की पावन गंगा बहे निशदिन तुम्हारे द्वारl
जय-जय मुनि महाराज…ll
नाम है गुरू का मंगलकारी महिमा अपरम्पार,
आचार्य विद्यासागर जी को मेरा हो नमस्कार।
दु:खहरण मंगलकरण ज्ञानी गुरूवर महान,
परम पूज्य गुरूदेव के चरणों में कोटि नमन।
जय-जय मुनि महाराज…ll
ज्योर्तिमय तीर्थंकर हो तेजोमय अतिवीर,
एेसे जिनवर स्वरूप को नतशित बारम्बार।
भक्ति से दिव्य शक्ति मिले ऐसा मन में जान,
गुरूवर के आशीष से जीवन बनता महानl
जय-जय मुनि महाराज…ll
भक्ति मंगलमय भावना मन में हर्ष अपार,
दिव्य अमृत के झरने बहे गुरूवर के दरबार।
श्रद्धा और विश्वास से जो कोई करता ध्यान,
गुरूवर के दर्शन में हम पा जाएं भगवान।
जय-जय मुनि महाराज…ll
संस्कृत,प्राकृत,कन्नड़,बंगला के ज्ञाता हैं आप,
हिन्दी भाषा का दुनिया में बढ़ता रहे प्रताप।
`इण्डिया नहीं भारत कहो` गुरूवर का संदेश,
हथकरघा से आत्मनिर्भर हो मेरा भारत देश।
जय-जय मुनि महाराज…ll
`मूक माटी` महाकाव्य है जैन आगम की शान,
कथा,रूपक,युग चेतना,अध्यात्म का ज्ञान।
भारतीय संस्कृति का अनुपम प्यारा संगम,
गुरू तीर्थ समान है चौबीस जिनवर का धाम।
जय-जय मुनि महाराज…ll
संयम स्वर्ण महोत्सव है पचासवीं दीक्षा का साल,
त्याग,तप की ज्योति से चमके गुरूदेव का भालl
जिनशासन के संत शिरोमणि कहलाते हैं आप,
गुरूवर निशदिन करते हैं णमोकार मंत्र का जाप।
जय-जय मुनि महाराज…ll
गुरूवर मुनिवर के दर्शन से होगा जग में नाम,
गुरूवर के चरणों में है आनन्द सुख का धामl
वन्दन करता गुरू चरणों में जो करता है ध्यान,
पिच्छी से गुरू आशीष मिले,पाएँ आत्मज्ञानl
जय-जय मुनि महाराज…ll
शुद्ध मन से जो नित पढ़ता गुरू अमृतवाणी,
अजर-अमर वह पद पाता है बनकर के ज्ञानी।
गुरूवर तेरे ‘रिखब’ का वन्दन करना स्वीकार,
नैया गुरूवर भवसागर से कर देना तुम पार।
जय-जय मुनि महाराज शत शत करुं प्रणामll
#रिखबचन्द राँका
परिचय: रिखबचन्द राँका का निवास जयपुर में हरी नगर स्थित न्यू सांगानेर मार्ग पर हैl आप लेखन में कल्पेश` उपनाम लगाते हैंl आपकी जन्मतिथि-१९ सितम्बर १९६९ तथा जन्म स्थान-अजमेर(राजस्थान) हैl एम.ए.(संस्कृत) और बी.एड.(हिन्दी,संस्कृत) तक शिक्षित श्री रांका पेशे से निजी स्कूल (जयपुर) में अध्यापक हैंl आपकी कुछ कविताओं का प्रकाशन हुआ हैl धार्मिक गीत व स्काउट गाइड गीत लेखन भी करते हैंl आपके लेखन का उद्देश्य-रुचि और हिन्दी को बढ़ावा देना हैl
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शानदार अभिव्यक्ती