पढ़ लिख कर नाम अब तो कमाती है बेटियां,
हर गुण में आगे बढ़ती बढ़ाती है बेटियां,
जीवन के सुख-दुःखों में हाथ बढ़ाती है बेटियां,
माता-पिता का ध्यान सदा रखती है बेटियां ।
रिश्तों को बखूबी से निभाती है बेटियां,
ससुराल और माइका चलाती है बेटियां,
रिश्तों के डोर को न भूलाती है बेटियां,
सारे दुःखों को अपने छुपाती है बेटियां ।
ऊँचे पदों पर बैठ नीयम बनाती है बेटियां,
अपने – परायें का फर्क मिटाती है बेटियां,
दुःख – दर्द में सभी को हँसाती है बेटियां,
पुरूषों के साथ कंधा मिलाती है बेटियां ।
नफरत से प्यार के तरफ ले जाती है बेटियां,
बेटी – बहू बन करके घर चलाती है बेटियां,
घर काम करके नौकरी पर जाती है बेटियां,
पढ़ने में अव्वल अंक ले आती है बेटियां ।
शिक्षा में अपनी पहचान बनायी है बेटियां,
शिखरों की चढ़ाई पे चढ़ आयी है बेटियां,
राष्ट्रपति व मंत्री पद को निभाई है बेटियां,
देश – विदेश में सम्मान पायीं है बेटियां ।
स्वर्ण पदक को जीत करके लायीं है बेटियां,
राणा प्रताप, शिवा की माई है बेटियां,
मर्दानी बनके अंग्रेजों को भगाई है बेटियां,
फिर कहते ऐसे क्यू हो परायीं है बेटियां ।
परिचय-
नाम -डॉ. अर्चना दुबे
मुम्बई(महाराष्ट्र)
जन्म स्थान – जिला- जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा – एम.ए., पीएच-डी.
कार्यक्षेत्र – स्वच्छंद लेखनकार्य
लेखन विधा – गीत, गज़ल, लेख, कहाँनी, लघुकथा, कविता, समीक्षा आदि विधा पर ।
कोई प्रकाशन संग्रह / किताब – दो साझा काव्य संग्रह ।
रचना प्रकाशन – मेट्रो दिनांक हिंदी साप्ताहिक अखबार (मुम्बई ) से मार्च 2018 से ( सह सम्पादक ) का कार्य ।
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काव्य स्पंदन पत्रिका साप्ताहिक (दिल्ली) प्रति सप्ताह कविता, गज़ल प्रकाशित ।
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कई हिंदी अखबार और पत्रिकाओं में लेख, कहाँनी, कविता, गज़ल, लघुकथा, समीक्षा प्रकाशित ।
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दर्जनों से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रपत्र वाचन ।
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अंर्तराष्ट्रीय पत्रिका में 4 लेख प्रकाशित ।