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कोयला कितना भी उजला दिखा ले,
पर मन का काला तो काला ही दिखेगा,
मकड़े का तो काम ही है बुनना जाला,
वो तो हमेशा नफरत का जाला ही बुनेगा,
गिरगिट से ना उम्मीद करना शराफत की,
बात बात में ये नित नए रूप दिखलायेगा।
दोमुहे साँपो का कभी भी विश्वास ना करना।
आस्तीन में रह कर वो तुझ को डस ही जायेगा ।।
मत परवाह कर ‘ नीर ‘ तू मन के काले लोगो की,
कभी ना कभी खुद इनका असली रूप सामने आएगा ।
छोड़ दो सब वक्त पर,सही वक्त ही इन्हें मजा चखायेगा।
नीरज त्यागीग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
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