रात बढ़ती जाती है, काली परछाई की तरह,,
देह रौंदी जाती है कुम्हराई मिट्टी की तरह,,
सजे बदन, सवंरे नयन बाट जोहते तलबगार की,,
वेश्यालय की ये कहानी है हर एक किरदार की,,
पूरी देह पर भारी बस एक खाली पेट हो जाता है,,
कोई बोटी का लुटेरा जब दो रोटी दे जाता है,,
वेश्यालय में धोखा ना मौका, ना कोई गुजारिश है,,
एक रात का सफर ये, और बदन की पैमाईश है,,
बिन स्नेह के देह तृप्त है, घोर विरोधी की तरह,,
विचलित मन में क्रोध समाया चीर हराती द्रोपदी की तरह,,
रात बढ़ती जाती है काली परछाई की तरह,,
देह रौंदी जाती है कुम्हराई मिट्टी की तरह,,
#सचिन राणा ‘हीरो’
हरियाणा