रिपु हो तम के तुम दीप,
गंधुमी आभा बिखेरते दीप।
हर्ष विशाद में तुम जले हो,
सब के प्रिय रहे हो दीप।
दर्शन अर्चन में रहे हो संग,
नीरांजन में जले हो दीप।
उमंग उत्सव का श्रृंगार तुम,
संस्कृति की पहचान हो दीप।
मस्तक सजा पावक पुँज,
रजनी में तुम जले हो दीप।
टिमटिमाते रहे सदियों से,
मुखर हुए से चले हो दीप।
करते नहीं भेदभाव किसी से,
रहे हो सबके प्यारे दीप।
महल झोपड़ी नहीं जानते,
रहे हो निश्छल न्यारे दीप।।
#सुदामा दुबे
परिचय : सुदामा दुबे की शिक्षा एमए(राजनीति शास्त्र)है।आप सहायक अध्यापक हैं और सीहोर(म.प्र)जिले के बाबरी (तहसील रेहटी)में निवास है। आप बतौर कवि काव्य पाठ भी करते हैं।