बीता पतझड़ का मौसम है आई बहार,
देखो-देखो जी आया रंगों का त्यौहारl
अब तो सूरज भी चंदा-सा शीतल लगे,
रितु तरुणाई में अपने पागल लगे,
फूल सरसों का लहरा के दिल से कहे..
प्रेम के रंग में रंग दो दिलदार,
देखो-देखो जी आया…l
गाँव के ताल में कुमुदिनी खिल रही,
मोरनी बाग में मोर से मिल रही..
बौर आमों के कहते क्या मुझसे सुनो,
अपने साजन का विरहन करे इंतज़ार..
देखो-देखो जी आया…l
रंग खेलो मगर बच्चों के भाव से,
ले लो छुटकारा गुज़रे सभी घाव से..
बस सिवा प्यार के कुछ रहेगा नहीं,
लगकर सीने से दुश्मन को कर लेना यार..
देखो-देखो जी आया…l
धरती कर दो हरी,केसरिया आसमां,
न हो हिन्दू कोई,न कोई मुसलमां..
और गगन से भी ऊँचा तिरंगा रहे,
भारत माँ बेटों से यही करतीं पुकार..
देखो-देखो जी आया…l
#नीरज त्रिपाठी गैर
परिचय : उ.प्र. के गोण्डा निवासी नीरज त्रिपाठी ‘गैर’ का काव्य जीवन छोटा है,पर इनके गुरु दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’ के मार्गदर्शन में अच्छी लेखनी जारी है। यह सौ से अधिक मुक्तक श्रृंखला, गीत,ग़ज़ल,कविता,मुक्त कविता और कहानियों को रच चुके हैं। कुछ रचनाएं पत्रिकाओं में छपी भी हैं। खास बात यह है कि,वायुसेना में रहकर मातृभूमि की सेवा कर रहे हैं।
सुन्दर रचना । बधाई नीरज को ।