मत रुठ आज मुझसे मेरे हमजोली,
खेलेंगे आज तो हम संग तेरे होली।
आई है फिर ये रुत बड़ी ही सुहानी,
न करना मेरी बातों से आनाकानी।
आजा मेरी जां कहीं ये रैना न बीते,
खेलेंगे आज तो हम संग तेरे होली।
कौन-सा रंग मल दूँ तुझे जरा ये बता,
मुझे तेरी बेरुखी में कुछ नहीं है पता।
रंग तेरा इक तो पहले से है साँवला,
उपर से ये मन मेरा थोड़ा है बावला।
न उलझने दे मुझे झूठी अदाओं में,
खेलेंगे आज तो हम संग तेरे होली।
कर रही मेरा इंतजार तेरी ये सखियाँ,
कहीं ऐसा न हो मिल जाएं अंखियाँ।
आती है तो आजा रंगों की बहार में,
कब से खड़ा मैं यहाँ तेरे इंतजार में।
न कर गोरी मेरे सामने यूँ ऐसे नखरे,
खेलेंगे आज तो हम संग तेरे होली।
मत रुठ आज मुझसे मेरे हमजोली,
खेलेंगे आज तो हम संग तेरे होली।
देखो सखियाँ आ गई तुम्हारी सहेली,
सुलझ गई अब तो आज सारी पहेली।
आओ थोड़ा करीब तुम गले लगा लूँ,
बातों-बातों में रंग ये गुलाबी लगा दूँ।
अब तो होगा थोड़ा नाच और गाना,
खेलेंगे आज तो हम संग तेरे होली।
#मनीष कुमार ‘मुसाफिर’
परिचय : युवा कवि और लेखक के रुप में मनीष कुमार ‘मुसाफिर’ मध्यप्रदेश के महेश्वर (ईटावदी,जिला खरगोन) में बसते हैं।आप खास तौर से ग़ज़ल की रचना करते हैं।