
चलो दूर शहर से,कहीं शांत शहर में,
दोजक से कहीं दूर,जन्नत के शहर मे।
पागल है ये जमाना दौलत के नसे में,
चल दूर कहीं साथी चाहत के शहर में।
बरसों तलक थी आशा अपने तमाम थे,
अब बेबशी की माया अपने ही शहर में।
चलो दूर शहर से,कहीं शांत शहर में,
दोजक से कहीं दूर,जन्नत के शहर मे।
हर तरफ फुलों वादियां बरसों तमाम थी,
अब नफ़रत की वादियां अपने ही शहर में।
चाहत नहीं है कोई मुरव्वत नहीं है कोई
व्यापार ही व्यापार है अपने ही शहर में।
चलो दूर शहर से,कहीं शांत शहर में,
दोजक से कहीं दूर,जन्नत के शहर मे।
#विपिन कुमार मौर्या

