कविता

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atul kumar

जो शेष बच गया शून्य नहीं था ,प्यार था..
जीवन शान्त कोलाहल का एक ज्वार था

दुख की सीमा सन्तापों में
सुख के अप्रतिम प्रलापो में
शब्दो से विचलित भावो में
सकुचे सिमटे से बाहो में
सुख का झीना संसार था
जो शेष बचा गया शून्य नहीं था, प्यार था..

पनघट से पनिहारीन रूठी
पतझड़ में अमराई डूबी
मोती ढूलक चले वनपथ पर
कवि से वो कविताई छूटी
सुख की दुख का अवगुन्ठन पहने
जीवन का विस्तार था
जो शेष बच गया शून्य नहीं था,प्यार था..

भावों की जब मनका गूंथी
शब्दों के आगे बेबस था
सपनो की जब जब आहूति दी
अपनो के आगे बेबस था
तेरा रूक कर मुड़ जाना ही
कमेरा असीम विस्तार थी
जो शेष बच गया शून्य नही था, प्यार था..

वो अंधेरे की आहट थी
मैं रूकता ना तो क्या करता?
हाथों से अगुलियां फिसल गयी
ना ठिठका होता गिर पड़ता,
उन आंखो का सहज सलोनापन
मेरा किञ्जित आधार था

जो शेष बच गया शून्य नहीं वो प्यार था..
जीवन शान्त कोलाहल का एक ज्वार था..

#अतुल पाण्डेय

परिचय-
नाम -अतुल कुमार पाण्डेय ‘यायावर ‘पिता का नाम- श्री वेद प्रकाश पाण्डेय ।पता-ग्राम पोस्ट बभनौली पाण्डेय,लार,देवरिया,उप्र।२७४५०२। योग्यता -गणित स्नातकोत्तर ,शिक्षा स्नातक ;प्रवक्ता_-श्री रैनाथ ब्रह्मदेव स्नातकोत्तर महाविद्यालय सलेमपुर ।

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