मैं आल्हादिनी (एक दृष्टिपात )

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पिंकी परूथी “अनामिका”एक ऐसा नाम, जो जितना सौम्य व्यक्तित्व है , उतना ही सहज और ज़हीन भी ।
समर्पित भी और सहयोगी भी ।
अंतरा शब्द शक्ति प्रकाशन से प्रकाशित ,
उनकी नई कविता की पुस्तक “मैं आल्हादिनी ” पढ़कर मन प्रमुदित है । बेहद कम समय में भावों का प्रस्फुटन, संगुम्फन और प्रकटीकरण आश्वस्त करता है एवम् एक
उम्मीद भी जगाता है।
इस छोटी सी पुस्तक में उनकी 12 विविध रंगी कविताएँ संग्रहीत है ।
मैं आल्हादिनी :-संग्रह की पहली कविता है ।
जो प्रीत के रँगों से रँगी एक समर्पण की कविता है ।
प्रेम में डूबी कवियत्री की अनुभूति इतनी तीक्ष्ण और गहन है,
जहाँ शरीर से आत्मा तक प्रिय की सुंगध बिखरी है ।
जिस पर कोई दूसरा रंग चढ़ ही नहीं सकता ।
चेहरा :-कवियत्री की मानवीय संवेदनाओं और एहसासों को आत्मसात कर,
उनके प्रभाव का चेहरे पर उभर आने का कथ्य है ।
जिसे प्रिय सहज ही पढ़ लेता है ।
और इसी को पढ़ लेने में कवियत्री खुश है । क्योंकि मानवीय मूल्य इन दिनों, कमजोरियों में शुमार होने लगे हैं ।
गीत ख़ुशी के :-सम्बन्धों की उष्णता बनाये रखने की मौलिक आवश्कयता एक दूजे को समय देना, संवाद और भावनाओं की अभिव्यक्ति का सुन्दर सृजन है ।
खुशबू :-सुन्दर सृजन है ।
खुशबूकी तासीर का सांगोपांग विवेचन,
अपने होने का ऐलान स्वयम् ही कर देती हैं खुशबुएँ उन्हें बाहरी उपकरणों की दरक़ार नही होती ।
फासले:-चल पड़ने और मंजिल को पा लेने के,
आकर्षण के सिद्धांत पर आधारित सृजन
पानी बिन:- पानी की महत्ता का प्रतिपादन है ।
इंसानी मन की शुष्क ज़मीं,प्रेम के पानी की प्यासी है ।
शून्य:- यत्पिण्डे तत्ब्रह्माण्डे की अवधारणा पर एक शून्य का महाशून्य में समाकर तिरोहित हो जाने का आख्यान है ।
मेरी रचना मेरी कविता:- सृजन की अनुभूतियों और अनिवार्यताओं के दरमियाँ परवान चढ़ती रचना प्रक्रिया का आख्यान है ।
क़िस्मत की लकीरें :- एक असीम लड़ाई लड़ता मन, कितनी गहरी बात पर जाकर थमता है ।
बानगी देखें:- बाहर की दौड़ से परे,
अंदर की ख़ामोशी बेहतर है ।
खोखले जज़्बात:-रिश्तों की बेहतरी के लिए उपयुक्त जमीं तलाशती और राह सुझाती रचना है ।
इम्तिहान:-नारी अस्मिता और नारी के औचित्य पर प्रश्नचिन्ह लगाती ज़िंदगी के बरअक्स, खुद की जिजीविषा के प्राबल्य का आख्यान है ।
हार न मानना अंतिम सच है ।
अंतिम रचना राज एक अच्छी  रचना है। माँ की सीख एक खूबसूरत जीवन जीने की राह सुझाती है ।
कुल मिलाकर संग्रह सहेजने योग्य है ।
हार्दिक शुभकामनाएँ ।
#ब्रजेश शर्मा विफल 
झाँसी

matruadmin

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।