0
0
Read Time36 Second
भावनाओं का निर्मल सलिल
हृदय से गुज़रते ही
दर्द की आग में उबल पड़ता है
और निष्क्रिय मस्तिष्क फिर
वापस पीछे धकेलते हुए
शरीर निष्प्राण सम कर देता है
हर डगर यूँ तो कठिन है
पर जब हालात साथ छोड़ते हैं
तब ये और भी दूभर हो जाती है
फिर भी घोर तिमिर में
उम्मीद की किरण है जीवित
इस अबुझ जीवन सफ़र में
#डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’
Post Views:
415