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ऐसा नहीं है कि नए रचनाकारों में प्रतिभा नहीं होती या वो अच्छी रचना नहीं लिख सकते। मैंने स्वयं यह अनुभव किया है कभी-कभी कुछ कम उम्र के छात्र या लोग मंचासीन या प्रसिद्ध रचनाकारों से बेहतर रचनाएँ लिखते हैं, पर उनकी रचनाओं को पढ़ने या कद्र करने वाला कोई नहीं होता है।
इसका सबसे बड़ा कारण उन रचनाओं को मंच न मिलना या किसी भी पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित न किया जाना है।
प्रकाशन न होने का कारण
1 अपनी रचना को यदि रचनाकार प्रकाशन के लिए किसी भी अखबार में भेजता है, तो वहाँ उसकी रचना प्रकाशित नहीं होती क्योंकि पत्र पत्रिकाओं के पास पहले से विख्यात लेखकों की रचना होती है, वे उसे प्राथमिकता देते हैं।
2 भाई भतीजावाद भी रहता है।
3 संपादकों का यदि किसी लेखक से परिचय रहता है, तो उसे फोन करके या सम्पर्क करते हुए रचना मंगाते हैं, ताकि उनके अखबार की trp में कमी न आए।
नए रचनाकार को तरजीह नहीं दी जाती है।
3 पत्र पत्रिकाओं में रचना छपवाने के लिए भी कभी कभी पैसे खर्च करने पड़ते हैं। पैसों के अभाव में रचनाकार अपनी रचना प्रकाशित नहीं करा पाता है।
4 ऐसा थोड़े ही है कि लेखन करना वंशगत प्रतिभा है, फिर भी जिसकी प्रसिद्धि होती है उसकी रचना को तरजीह दी जाती है। ऐसा भी नहीं कि सभी प्रसिद्ध व्यक्ति के वंशज अच्छा नहीं लिख सकते पर अज्ञात रचनाकार को इस कारण जगह न देना दुखद है।
5 , जो दिखता है, वही बिकता है के तर्ज पर भी अज्ञात रचनाकारों की रचनाओं का प्रकाशन नहीं होता है।
6. जिनके पास धन है वे कुछ भी लिखकर प्रकाशित करा देते हैं। यहाँ तक पत्र पत्रिकाओं में छपवाने के लिए भी धन खर्च करते हैं, पर आर्थिक रूप से कमजोर रचनाकार ऐसा नहीं कर सकता है।
नए रचनाकारों को मंच न उपलब्ध होने के भी कमोबेश यही कारण हैं।
समस्या का समाधान
1. प्रकाशित न होने पर भी नए रचनाकार को अपनी रचना सोशल साईट पर डालना चाहिए।
2. ऑनलाइन रचना प्रकाशन संबंधी जानकारी प्राप्त कर अपनी रचनाओं का निशुल्क प्रकाशन करवाना होगा।
4. बहुत से साइट नवीन और अच्छी रचनाओं के लिए रचनाकारों को पैसे भी देते हैं। इसके लिए रचनाकारों को नवीन तकनीकों को अपनाना होगा।
5. जिस तरह फूल खिलने पर उसकी खुशबू नहीं छिपती, उसी प्रकार नए रचनाकार में यदि प्रतिभा है और रचना अच्छी है तो ऑनलाइन प्रकाशन द्वारा प्रसिद्धि भी प्राप्त कर सकता है और मंच भी।
अंततः मैं यही कहना चाहूँगी कि भले ही पत्र-पत्रिका या मंच में जगह पाने के लिए भाई भतीजावाद, पैसा और प्रसिद्धि मायने रखता है, फिर भी नए रचनाकार को हताश नहीं होना चाहिए बल्कि अपने आप को साबित करने के लिए नवीन तकनीक का सहारा लेना चाहिए।
#डॉ मनीला कुमारी
परिचय : झारखंड के सरायकेला खरसावाँ जिले के अंतर्गत हथियाडीह में 14 नवम्बर 1978 ई0 में जन्म हुआ। प्रारंभिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल में हुआ। उच्च शिक्षा डी बी एम एस कदमा गर्ल्स हाई स्कूल से प्राप्त किया और विश्वविद्यालयी शिक्षा जमशेदपुर वीमेन्स कॉलेज से प्राप्त किया। कई राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय सम्मेलनों में पत्र प्रस्तुत किया ।ज्वलंत समस्याओं के प्रति प्रतिक्रिया विविध पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही है। प्रतिलिपि और नारायणी साहित्यिक संस्था से जुड़ी हुई हैं। हिन्दी, अंग्रेजी और बंगला की जानकारी रखने वाली सम्प्रति ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालय में पदस्थापित हैं और वहाँ के छात्र -छात्राओं को हिन्दी की महत्ता और रोजगारोन्मुखता से परिचित कराते हुए हिन्दी के सामर्थ्य से अवगत कराने का कार्य कर रहीं हैं।
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