ये हमारी आँख का बहता हुआ जल,
है अधूरे इक समापन की कहानी..।
दो किनारे बन गए हम इक नदी के,
जो कि लहरों से सदा संवाद करते..।
आस की कोई न कश्ती दिख रही थी,
फिर भला क्यूँ व्यर्थ हम अनुनाद करते..।
क्या नहीं स्वीकार था ये भी नियति को,
जो समय से संधि कर जल सोख डाला..।
अब किनारों का ज़रा दुर्भाग्य समझो,
देर तक जिन पर कभी ठहरा न पानी..
ये हमारी, आँख का बहता हुआ जल,
है अधूरे इक समापन की कहानी..।।
#इन्द्रपाल सिंह
परिचय : इन्द्रपाल सिंह पिता मेम्बर सिंह दिगरौता(आगरा,उत्तर प्रदेश) में निवास करते हैं। 1992 में जन्मे श्री सिंह ने परास्नातक की शिक्षा पाई है। अब तक प्रकाशित पुस्तकों में ‘शब्दों के रंग’ और ‘सत्यम प्रभात( साझा काव्य संग्रह)’ प्रमुख हैं।म.प्र. में आप पुलिस विभाग में हैं।
मैं बहुत आभारी हूँ कि आपने मेरे शब्दों को प्रकाशित किया ।
टीम के सभी सदस्यों का आभार व्यक्त करता हूँ।
बहुत बहुत आभार प्रणाम आप सभी को
Bahut sundar
सुन्दर