और नहीं रही बेटी

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‘‘डाक्टर साब आपके घर से फोन आया है आपका बेटा बीमार है’’ । नर्स ने बहुत देर तक डाक्टर साहब के फरुसत हो जाने की राह देखी थी पर वे फुरसत हो ही नहीं पा रहे थे । एक मरीज जाता तो दूसरा आकर उनके सामने बैठ जाता । डाक्टर साहब भी बगेैर माथे पर शिकन लाये उसे देखने लगते उससे प्यार से बात करते और ‘‘अरे चिन्ता की कोई बात नहीं ठीक हो जाओगे’’ कहकर मरीज का हौसला बढ़ाते । यह वाक्य उनका तकियाकलाम सा बन गया था ‘‘डाक्टर साहब आप हर एक पेशेन्ट से ऐसा ही बोलते हैं ?’’
‘‘तुम नर्स हो समझा करो, पेशेन्ट डाक्टर के पास बहुत उम्मीदें लेकर आता है और सोचता है कि डाक्टर ने उसके नब्ज देख ली तो अब वह ठीक हो ही जायेगा……मेरे ये शब्द दसे दवा से ज्यादा असरकारी होते हैं’’ । डाक्टर साहब हंस कर कहते । नर्स मरीजो के प्रति उनकी तल्लीनता देखती रहती और स्वंय भी हरपल चैकन्नी रहती मालूम नहीं कब डाक्टर साहब आवाज लगा दें ‘‘सिस्टर जरा इधर आना’’ वह इधर आने का मतलब समझने लगी है याने मरीज का वीपी चेक करना है । वह मरीज के हाथों में पट्टा लपेट देती और डाक्टर साहब उसमें पंप कर वीपी देखने लगते ‘‘अरे कुछ नहीं होता वीपी यदि बढ़ा भी है तो ठीक हो जायेगा’’ मरीज उन्हें कृतज्ञता भरी नजरों से देखता ‘‘अरे आपका वीपी तो बढ़ा हुआ है……कोई बात नहीं…..पर कुछ तो तुम चिंता करते हो…चिंता बिल्कुल नहीं करना चाहिये…जिस दिन तुम चिन्ता करना छोड़ दोगे उस दिन से तुम्हार वीपी बढ़ना भी बंद हो जायेगा अभी तो मैं दवा दे ही रहा हूॅ पर चिन्ता छोड़ देने वाली दवा सबसे अच्छी दवा है समझे’’ । वे जबरन अपने चेहरे पर मुस्कान लाते । मरीज का मुरझाया चेहरा खिल उठता । डाक्टर साहब भले ही सरकारी अस्पताल में काम करते हैं पर जो भी मरीज आता वो सारे डाक्टरों को छोड़कर उनको ही दिखाने की जिद्द लेकर आता। परिणाम यह होता कि बाकी के डाक्टर तो फिरी बैठे रहते पर डाक्टर अनिल हमेशा व्यस्त रहे आते । उनके कमरे के सामने मरीजों की लम्बी लाइन लगी रहती । दोपहर तक वे इसे चेक करते फिर वार्ड में निकल जाते वार्ड के मरीजों को देखने में भी उन्हें बहुत समय लगता ‘‘ डाक्टर साहब जा मान लो कि रात भर नींद आई ही नहीं…तनक देखो तो…….मूड़ सुई पिरात रहो’’ । वार्ड में भरती मरीज बेतकल्लुफ हो जाता ं डाक्टर साहब प्यार से उसके माथे पर हाथ रखते और दवा लिख देते । मरीज संतुष्ट हो जाता ।
कोरोना ने कहर मचाना चालू कर दिया था । हर दिन सैंकड़ों की संख्या में मरीज चेक कराने आ रहे थे । इनमें वे लोग भी शामिल थे जिन्हें मामूली सर्दी-जुखाम हुआ होता । कोरोना ने भय का ऐसा वातावरण बना दिया था कि हर व्यक्ति अपनी सुरक्षा के लिए बैचेन होने लगा था । डाक्टर साहब का काम बढ़ गया था । अब उनका ज्यादा समय अस्पताल में ही व्यतीत हो रहा था । ‘‘ डाक्टर साहब अपनी भी चिन्ता किया करें आप…कोरोना एक दूसरे से फैलता है….आप तो जानते ही हैं….’’ । नर्स को उनकी चिन्ता हो रही थी । नर्स डाक्टर साहब से सीनियर थी । डाक्टर साहब उसका बहुत सम्मान भी करते थे । वह जब से डाक्टर साहब इस अस्पताल में पदस्थ हुए हैं तब से उनके साथ काम कर रही है ‘‘तुम तो मेरी बड़ी सिस्टर बन जाती हो….पर अच्छा है …..कम से कम तुम मुझे डांट लेती हो तो मुझे भी भय बना रहता है’’ । हंसते हुए डाक्टर साब कहते । डाक्टर साहब की बातों से उसे अपनी जिम्मेदारी और बढ़ी महसूस होती । कोरोना के मरीज बढ़ने लगे तो उसे अपनी भी चिन्ता हुई और डाक्टर साहब की भी । वैसे तो चिन्तित डाक्टर साहब भी थे पर वे मरीज को न देखें ऐसा वो कर नहीं सकते थे ं उनके ही अस्पताल के कुछ डाक्टर कोरोना के मरीजों के बढ़ने के साथ ही बगैर बताये गायब हो चुके थे पर वे ऐसा नहीं कर सकते थे । डाक्टर कम होने से उनका काम और बढ़ गया था । वे लगभग घर जा नहीं रहे थे ‘‘सुमन देखो अभी कुछ दिन तुमको ही बच्चों की देखभाल करना होगी….में दिन भर कोरोना के मरीजों का इलाज कर रहा हूॅ….ना …मालूम कब मैं खुद ही इस बीमारी से ग्रसित हो जाऊं….मैं नहीं चाहता कि तुम या बच्चे इससे संक्रमित हों……’’ । सुमन कुछ नहीं बोली । वह डाक्टर साहब के स्वाभाव को भलीभांति जानती थी ‘‘वे मानते ही नहीं हैं…..मैं क्या करूं…’’ अक्सर वह अपने सासू माॅ को बोलती । उसकी सासू मां अपने बेटे का स्वभाव सुमन से पहिले से जानती हैं इसलिये ही तो वे लगभग रोज ही फोन लगाकर हालचाल लेती रहती और सुमन को ढाड़स बंधाती रहती ‘‘वह तो बचपन से ही ऐसा है बेटा…तुम भी कभी जिद्द नहीं करना उससे…..’’ । सुमन ने कभी जिद्द की भी नहीं वह अपने पति की हर बात में सहमति जताती । डाक्टर अनिल को अपनी पत्नी की यह बात ज्यादा अच्छी लगती थी ‘‘स्वीट माई वाईफ…..वाकई तुमको ही मेरी वाईफ बनना चाहिये था लोग सच कहते हैं कि जोड़ियां भगवान मिलाकर भेजता है…उसने हमारी जोड़ी बहुत बनाई हें……थैंक्यू……गाॅड…..’’ । वह हंसता और सुमन शर्मा जाती । उनके दो संतानें थीं दिव्यांश और प्रमिला…। ‘‘दिव्यांश तो एक दम आधुनिक नाम है….पर प्रमिला….जरा पुराना नहीं लग रहा…’’
‘‘जरा…….अरे पूरा ही पुराना नाम है……प्रमिला वर्षों पहिले मेरे साथ पढ़ा करती थी……सोचो कितना पुराना नाम होगा……’’
‘‘फिर बिटिया का नाम ……क्यों रख रहे हो…….’’
‘‘ताकि जैसे में प्रमिला को बहुत प्यार करता था वैसे ही अपनी बिटिया को भी कर सकूं….’’
‘‘अपनी सहेली की तरह…….’’
‘‘अरे नहीं……वो मेरे साथ जरूर पढ़ती थी पर वो मेरे लिये अपनी बहिन जैसे ही थी । मैं उसको बहुत चाहता था और वो भी मुझे…….वह मुझे भैया कहकर ही पुकारती थी….मेरा ध्यान रखती थी…..पर स्कूल के दिनों में ही वह अचानक बीमार हो गई और एक दिन भगवान के पास चली गई । मैं बहुत रोया था उसके जाने के बाद कई दिनों तक स्कूल ही नहीं गया था…..फिर मैंने सोच लिया कि यह जो प्रमिला है न एक दिन मेरी बेटी बनकर फिर से जन्म जरूर लेगी……तो देखो उसने जन्म ले भी लिया ’’। वे उसे बहुत प्यार भी करते थे । अस्पताल से लोैटते ही दोनों बच्चों को देानों बांहों में लेकर खेलना शुरू कर देते ‘‘अरे कुछ खा लो दिन भर के भूखें होगे….फिर खेल लेना बच्चों के साथ…’’
‘‘बच्चे मिल गए तो फिर भूख किस को लगेगी पगली…’’ वे हंस देते । वे बहुत देर तक बच्चों के साथ खेलते फिर सुमन के साथ बात करते । यह उनकी दिनचर्या में शामिल हो चुका था । बच्चे भी उनकी राह देखते रहते । कई बार वे बहुत लेट आते जब तक बच्चे सो चुके होते तो वे उनके माथे पर हाथ फेरकर उनके पास यूूं ही चुपचाप बैठे रहते । कोरोना का संक्रमण फैलने लगा तो उन्हें अपने बच्चों की चिन्ता भी हुई पर उनकी दिनचर्या इतनी व्यस्त होती चली गई कि देर रात को लौटते जब तक बच्चे सो चुके होते । संक्रमण के ज्यादा फैलने के बाद उन्होने यह तय कर लिया कि अब वे घर नहीं जायेगें……अस्पताल में ही वे रात काट लिया करेगें ताकि संक्रमण घर तक न फैले । दिनभर तो व्यस्तताओं के कारण उनको कुछ भी ध्यान न रहता पर जैसे ही वे विश्राम के लिये लेटते बच्चों के चेहरे उनके सामने घूमने लगते ।
‘‘डाक्टर साब आपके घर से फोन आया है आपकी बेटी बीमार है’’ । नर्स ने अपनी बात को फिर दोहराया । डाक्टर अनिल के माथे पर चिन्ता की लकीरें उभर आई ‘ः‘अरे…..’’
वे जिस मरीज को देख रहे थे उसकी जांच करते रहे । उसको दवा की पर्ची देने के बाद उन्होने नर्स की ओर देखा ‘‘दिव्यांश………’
‘‘नहीं…..प्रमिला……’’
‘‘ओह…’’
उन्होने अपने सामने खड़े मरीजों की ओर देखा । लम्बी लाइन उनके सामने लगी थी । मरीज नर्स की और उनकी सारी बाते सुन भी रहे थे । मरीजों को लग रहा था कि अब डाक्टर साहब उन्हें नहीं देखेगें इसलिये उनमें अफरा-तफरी सी मचने लगी थी । डाक्टर अनिल ने असहाय निगाहों से नर्स की ओर देखा, मानो पूछ रहे हों ‘‘मैं क्या करूं…….’’ नर्स डाक्टर अनिल के अनकहे शब्दों को समझ चुकी थी ‘‘चलिए आप लोग डाक्टर कोरी को दिखा लें….डाक्टर साहब को घर जाना है…’’ ं नर्स ने मरीजों को वहां से हटाना शुरू कर दिया । डाक्टर अनिल की बैचेनी बढ़ गई ‘‘नो….सिस्टर नो….मैं इनका चेकअप करने के बाद ही घर जाउंगा….आप लोग रूके रहें…….मैं सभी का चेकअप करता हूॅ अभी’’ । इस बार डाक्टर अनिल ने नर्स की ओर बिल्कुल नहीं देखा । वे जानते थे कि सिस्टर उन्हें अब खूंखार निगाहों से देख रही होगी ।
‘‘आप ऐसा कैसे कर सकते हैं डाक्टर साहब….आपकी लाड़ली बिटिया बीमार है……और आप…..’’
कहते हुए वह वहां से चली गई । वह जानती थी कि डाक्टर साहब उसकी एक नहीं सुनेगें । डाक्टर अनिल अपनी नर्स की नाराजगी को समझ गये थे । वे चुपचाप मरीजों को देखने लगे । उनके चेहरे पर हमेशा खिली रहने वाली मुस्कान गायब हो चुकी थी । डाक्टर अनिल वैसे तो दोपहर तक फिरी हो जाते थे आज तो वे भी और भी जल्दी फिरी होना चाह रहे थे तभी एक बुजुर्ग ूमहिला अपनी चार साल की नातिन को लेकर आ पहुंची ‘‘डाक्टर साब देखो इसे बहुत तेज बुखार है और सांस लेने में भी दिक्कत हो रही है’’ । डाक्टर अनिल अपनी सीट से उठते-उठते रह गए । वे उसे न नहीं बोल पाए हालांकि उन्हें अपनी बिटिया की भी चिन्ता हो रही थी । वैसे भी उन्होने बहुत दिनों से अपने बच्चों को नहीं देखा था पर जब से प्रमिला की तबियत खराब होने का समाचार मिला था वे अपने आपको बैचेन महसूस कर रहे थे । उन्होने उस बुजुर्ग महिला की गोद में लेटी हुई मासूम बालिका को देखा । उनकी आंखों भ आईं । वह बच्ची कराह रही थी । उसे वाकई सांस लेने में परेशानी हो रही थी । वे समझ गए थे कि यह बच्ची कोरोना की चपेट में आ चुकी है । उन्होने उसके माथे पर हाथ रखा । पीपीईकिट के कारण वे उसकी कोमलता का अहसास नहीं कर पाउ पर उनका मन हो रहा था कि उस बच्ची का माथा चूम लें । उन्होने नर्स को आज लगाई ‘‘सिस्टर…….क्यूक……’’। नर्स के चेहरे पर नाराजगी के भाव थे ‘‘आपकी भी इतनी ही छोटी बच्ची है जो बीमार है….ध्यान आया कि नहीं…..’’ । उन्होने नर्स की बात को अनसुना कर दिया ‘‘इसे जल्दी से आक्सीजन लगाओ…..क्यूक….’’ । नर्स ने कम्पाउंडर की मदद से आक्सीज लगा दी । डाक्टर अनिल ने इंजेक्शन अपने हाथों में ले लिया था ।
‘‘आपकी प्रमिला को सांस लेने में परेशानी हो रही है आप जल्दी से आ जाइये न’’ । सुमन का फोन था । डाक्टर अनिल के हाथ कांपने लगे ।
‘‘सुनो सुमन…..मैं अभी बहुत व्यस्त हूॅ….तुम उसे लेकर अस्पताल आ सकती हो क्या…..’’
‘‘आप…..नहीं पा रहे हैं….अपनी बच्ची को देखने….’’ । सुमन ने पहिले ही आपकी प्रमिला बोला था
तकि डाक्टर अनिल बैचेन हो जायें और अपने सारे काम-काज छोड़कर भागे-भागे चले आयें ।
‘‘देखो सुमन…इस समय मैं भी एक नन्ही सी बच्ची का इलाज कर रहा हूॅ….वह भी सीरियस है ’’ कहते कहते उनकी जबान तो लड़खड़ा रही थी पर वे अपने आपको मजबूर समझ रहे थे । वे उस बच्ची को छोड़कर जाना नहीं चाह रहे थे ।
‘‘प्लीज सुमन तुम उसे लेकर यहां आ जाओ……’’
सुमन ने कुछ नहीं बोला । उसने फोन रख दिया । नर्स अभी भी डाक्टर अनिल को नाराजगी भरे भाव से देख रही थी ।
बच्ची सीरियस थी । आक्सीजन लगा देने के बाद भी उसकी संास धीमे-धीमे ही चल रही थी ।
‘‘सिस्टर….इसे वार्ड में ले चलो….बाॅटल लगाओ……।
डाक्टर अनिल के माथे पर चिन्ता की लकीरें साफ दिखाई देने लगी थीं । नर्स समझ गई थी कि बच्ची की हालत ठीक नहीं । कम्पांउडर की मदद से बच्ची को वार्ड में भर्ती कर लिया गया था । उसकी दादी उसके पीछे रोती हुई चल रही थी । डाक्टर अनिल खुद भी साथ में रहकर हिदायतें दे रहे थे । उस बच्ची का कोरोना टेस्ट करा दिया गया था । डाक्टर अनिल उसका इलाज उसे कोरोना पाजेटिव मानककर ही कर रहे थे । बच्ची की हालत बिगढ़ती जा रही थी । उसकी दादी का रो-रो कर बुरा हाल था ‘‘मेरी इकलौती बच्ची है डाक्टर साब इसके तो पिता भी नहीं है और माॅ भी नहीं आप इसे बचा लें डाक्टर साब आप तो भगवान हैं आपने कितनों को बचाया है इस बच्ची को भी बचा लें । ’’
‘‘मैं पूरी कोशिश कर रहा हूॅ माॅ जी…आप चिन्ता न करें वो ठीक हो जायेगी’’
डाक्टर अनिल ने कह तो दिया था पर वे जानते थे कि इसके लिये उन्हें बहुत मेहनत करनी होगी जो वे कर भी रहे थे । रह-रह कर उन्हें अपनी बच्ची की याद आ जाती । उन्होने सुमन को फोन भी लगाया पर उसका फोन लग ही नहीं रहा था ।
प्रमिला को सुमन अस्पताल ले आई थी । डाक्टर अनिल ने डाॅ कोरी को बोल दिया था वो उसका इलाज कर रहे थे । उनका मन तो बहुत हुआ कि वे खुद जाकर प्रमिला को एक बार देख आयें पर उस बच्ची के पास से वे हिल भी नहीं पा रहे थे । डाक्टर कोरी ने ही उन्हें फोन कर बताया था कि प्रमिला की कोरोना रिपोर्ट पाजेटिव आई है । उनकी चिन्ता और बढ़ गई थी ।
‘‘आप इतने निष्ठुर होगें मैंने तो सोचा भी नहीं था डाक्टर साहब’’ नर्स के चेहरे पर बेहद नाराजगी के भाव थे । डाक्टर अनिल मौन ही रहे । वे अपने मन में उमड़ रहे भावों को व्यक्त भी नहीं कर सकते थे ।
‘‘देखो सिस्टर एक डाक्टर के लिये सारे मरीज ही उनके अपने होते हैं वो अपनों के लिये दूसरे मरीज को बेसहारा नहीं छोड़ सकते….’ । उन्होने अपनी आंखों से बहने को बेताब आंसूओं को पौछा था जिसे कोई नहीं देखा पाया था । उन्होने बेड में लेटी बच्ची की ओर देखा ‘‘कितनी मासूम बच्ची है इसके पास तो कोई भी नहीं हैं मेरी बच्ची के पास तो उसकी माॅ है ही’’ । उन्होने प्यार से उस बच्ची के माथे को सहलाया । बच्ची अभी भी ठीक ढंग से सांस नहंीं ले पा रही थी ।
सुमन जब से अस्पताल प्रमिला को लेकर आई है तभी से अपने पति की प्रतीक्षा कर रही है । उसे भरोसा था कि डाक्टर अनिल दौड़ते हुए आयेगें और अपनी बच्ची के माथे पर हाथ रखकर प्यार करेगें । वैसे भी उन्होने पिछले पन्द्रह दिनों से अपने बच्चों को देखा तक नहीं था । ऐसा पहिले कभी नहीं हुआ ‘‘यार सुमन जब तक मैं बच्चों को देख न लूं नींद ही नहीं आती’’ वे कई बार अस्पताल से देर रात को लौटते जब तक बच्चे सो गये होते तो भी उन्हें भर निगाह देखकर अपनी पत्नी से बोलते । सुमन उनकी आदत को जानती थी इसलिये मुस्कुराकर रह जाती ‘‘अरे चलो दिन भर के थके हो हाथ-पांव धो ले अपने अस्पताल के हाथ बच्चों पर मत लगा देना’’
वे सुमन को बांहों में भर लेते ‘‘तुम्हे तो लगा सकता हूॅ न……’’
‘‘बिल्कुल भी नहीं…..मालूम नहीं किस-किस बीमारी वाले मरीजों को छूकर आये होगे…अगर मैं बीमार हो गई न तो फिर इन बच्चों की देखभाल आपको ही करनी पड़गी समझ गए न’’ ।
‘‘अरे बाप रे…..तब तो मैं नहा कर ही आता हूॅ…फिर तुमसे प्यार करूंगा…’’ । देानों हंस पड़ते ।
सुमन के आते ही नर्स ने प्रमिला को स्ट्रेचर पर लिटाकर वार्ड में पहुंचा दिया था ।
‘‘सिस्टर डाक्टर साहब….’’
‘‘वो अभी एक बच्ची को देख रहे हैं जल्दी आयेगें…’’ । नर्स ने कह तो दिया था पर वो जानती थी कि डाक्टर अनिल अभी नहीं आने वाले । उसका चेहरा गुस्से से फूला हुआ था ‘‘ये भी कोई बात हुई अपनी बच्ची को छोड़कर दूसरे का इलाज कर रहे हैं……’’ पर वो कह नहीं सकती थी । उसने ही डाक्टर कोरी को बुलाया था । हालांकि वह जानती थी कि डाक्टर कोरी बहुत अच्छा इलाज नहीं करते पर क्या करें और कोई डाक्टर उपलब्ध था ही नहीं । डाक्टर कोरी के पास अनिल का भी फोन आ चुका था ‘‘मेरी बेटी की तबियत ठीक नहीं है…सुमन लेकर अस्पताल आ रही होगी जरा तुम उसे देख लेना….’’ । डाक्टर कोरी ने सुमन के आते ही सबसे पहिले कोरोना टेस्ट कराया था ।
प्रमिला को तेज बुखार था उसे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी । वह आंखें बंद किए हुए पड़ी थी
‘‘पापा…..पा..पा……पापा को बुलाओ न……’’ । उसकी धीमी आवाज निकल रही थी
‘‘पापा आते ही होगें…..तुम शांत हो जाओ……अभी डाक्टर अंकल आपकी जांच करने वाले हैं’’
‘‘नहीं….मुझे तो पापा से ही इलाज कराना है……मेरे पापा को बुलाओ……माॅ…पापा को बोलो न कि वो जल्दी आ जायें…….उनकी गुड़िया उन्हें बुला रही है…….माॅ……प्लीज…..माॅ…’’
सुमन ने उसके माथे पर हाथ रखा पर उसने हाथ को छिटक दिया था ।
‘‘मिसेज सुमन प्लीज…आप उसे न छुयें….वह कोरोना संक्रमित हो सकती है ऐसे में……’’
‘‘नो…..डाक्टर……मुझे तो उसे छूना ही होगा….वह बहुत बैचेन है…’’
नर्स ने सुमन के हाथों में ग्लोब पहना दिये और मास्क से चेहरा डंक दिया । बालों पर भी टोपी लगा दी थी ‘‘डाक्टर साब मिसेज सुमन को प्रमिला के पास रहने दो…..’’
डाक्टर अनिल बैचेनी से कुर्सी से उठ खड़े हुए ‘‘जाने प्रमिला की क्या स्थिति होगी…..मैं एक बार देख ही आता हूॅ…..और डाक्टर कोरी को भी बता देता हूॅ कि क्या इलाज करना है’’ । बेड पर लेटी बच्ची ने शायद उन्हें खड़े होते देख लिया था
‘‘डाक्टर अंकल…….आप कहीं जा रहे हैं…….मुझे छोड़कर…….’’ उसने अपना हाथ ऊपर उठाने की कोशिश की ।
‘‘नहीं…..तुम बिल्कुल नहीं हिलो…….बाॅटल लगी है न…….’’
‘‘पर कहीं जायेगें तो नहीं…न डाक्टर अंकल…..मेरे पास तो यहां कोई भी नहीं हैं……आप चले जायेगें तो मैं रोने लगूगीं……आप न जाइये डाक्टर अंकल….’’ । उसकी आंखों से आंसू भी बहे थे ।
डाक्टर अनिल फिर से कुर्सी पर बैठ गए । उन्होने फोन लगाया था डाक्टर कोरी को
‘‘डाक्टर साब मैंने कोरोना का टेस्ट करा दिया है…उसकी रिपोर्ट बस आने वाली ही होगी….उसे दवा भी दे दी है…..आप चिन्ता न करें…….’’ । डाक्टर कोरी से बात कर उन्हें कुछ संतोष हुआ ।
‘‘सुमन……मेरी अभी डाक्टर कोरी से बात हो गई है……रिपोर्ट आ जाए फिर उसकी ट्रीटमेन्ट चालू हो जायेगा….तुम चिन्ता मत करो…मैं भी बस अभी आता हूॅ…’’
‘‘आप कहां हैं….देखो प्रमिला बार-बार आपको पुकार रही है…प्लीज आप जल्दी से आ जायें..’’
सुमन की आवाज में बैचेनी थी जिसे डाक्टर अनिल ने पढ़ लिया था । वे खुद भी बहुत बैचेन थे । वे प्रमिला को अपनी आंखों से देख लेना चाह रहे थे । डाक्टर अनिल बेड पर लेटी बच्ची की ओर देखा, वह अभी भी उन्हें ही देख रही थी । उसकी संास लेने की परेशानी अब कम हो चुकी थी ।
प्रमिला की रिपोर्ट पाजेटिव आई थी याने वह कोरोना पाजेटिव थी । डाक्टर कोरी ने कोरोना का इलाज करना शुरू कर दिया था । प्रमिला को सांस लेने में होने वाली परेशानी बढ़ती जा रही थी उसे आक्सीजन लगा दिया गया था । एक हाथ में बाॅटल लगा थी । नर्स अपनी देख रेख में काम करा रही थी । प्रमिला जब भी आंख खोलती अपने पापा को ही ढूढ़ती वह पापा…पापा…पुकार रही थी ।
‘‘माॅ पापा नहीं आये…..पलीज उनको बुलाओ न….मुझे उनकी गोदी चढ़ना है…माॅ…उनसे कहो न कि उनकी प्यारी बिटिया बीमार है…वो दोैड़े चले आयेगें…….माॅ…माॅ…प्लीज…माॅ ’’
सुमन बार-बार बाहर के दरवाजे की ओर देख लेती हर बार दरवाजा खटकने पर उसे लगता कि उनके पति ही होगें । पर वो अभी तक नहीं आये थे । प्रमिला की तबियत बिगड़ती जा रही थी ।
‘‘ बस पापा आ ही रहें हैं….अभी उन्होने फोन कर मुझे बताया है और कहा है कि मेरी गुड़िया से कह देना कि वो दवा खा ले…..वो उसे गोद में लेने आ रहे हैं…’’ सुमन की आंखों से झर-झर आंसू बह रहे थे । उसका मन हो रहा था कि अपने पति को फिर से फोन लगाकर प्रमिला की तबियत बिगड़ने की जानकारी दे दें और उन्हें बुरा-भला भी कहे । पर उसने फोन नहीं लगाया ।
‘‘माॅ आप रो क्यों रहीं हैं…अभी पापा आयेगें न तो वो मुझे ठीक कर देगें…..’’
प्रमिला की आवाज लड़खड़ाने लगी थी । उसकी संास लेने की गति और धीमी हो गई थी ।
‘‘डाक्टर साहब आप डाक्टर अनिल से बात करें न….उनसे पूछें क्या ट्रीटमेन्ट देना है…’’
नर्स प्रमिला की हालत को बिगड़ते देख चिन्तित थी । वह जानती थी कि कोरोना का अच्छा इलाज तो केवल डा. अनिल ही कर सकते हैं उन्होने सैंकड़ों मरीजों को ठीक भी किया है, पर वे दूसरे मरीज को देखने में व्यस्त हैं । उसकी झुंझलाहट बढ़ती जा रही थी ।
‘‘मैं ट्रीटमेन्ट दे तो रहा हूॅ सिस्टर……कोरोना के पेशेन्टों को यही टीªटमेन्ट दिया जाता है…..प्लीज मुझे डिस्टर्ब मत करो सिस्टर…’’ । डाक्टर कोरी की आवाज में नाराजगी थी । नर्स ने समझ लिया था पर वो प्रमिला के बिगड़ते हालत से परेशान थी ।
नर्स लगभग हाॅफते हुए डाक्टर अनिल के पास पहुंची थी
‘‘डाक्टर……आप लापरवाही मत करो……चलो…..प्रमिला को देख लो…..उसकी हालत बिगड़ती जा रही है……..आप उसके ट्रीटमेन्ट को एक बार चेक कर लो…….साथ में भर निगाह अपनी बच्ची को भी देख लो…..यदि ऐसे ही हालत रहे तो शायद आप उसे फिर न देख…..’’
डाक्टर अनिल सकपका गये ‘‘क्या…..पर डाक्टर कोरी तो कह रहे थे कि उसकी हालत में सुधार है’’
‘‘मैं नर्स हूॅ…..मैं मेरीज की स्थिति को उनसे ज्यादा अच्छे से समझ सकती हूॅ…..प्लीज डाक्टर आप
चलकर देख लें……हो सकता है कि आप उसकी जान बचा सकें……’’
डाक्टर अनिल अब रूके नहीं रह सके । वे लगभग भागते हुए कदमों से प्रमिला के कमरे की ओर पहुंचे थे. ।
‘‘मेरी गुड़िया देखो तुम्हारे पापा आ गए……’’ कहते हुए उन्होने प्रमिला को गोद में उठा लिया था पर तब तक प्रमिला उनसे बहुत दूर जा चुकी थी । उनकी गोद में प्रमिला का निश्तेज शरीर ही था । पूरा कमरा खामोश था । डाक्टर अनिल के सुबकने की आवाज चारों ओर गूंज रही थी ।

कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
जिला-नरसिंहपुर म.प्र.

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।