तरुण रहोगे सबके मन में तुम शाश्वत अमरत्व रूप !
धर्म ध्वजा फहरेगी यूं हीं खिल रहेगा रंग अनूप !
तुमने सबको समझाया है जीवन कैसे जीना है !
जिनवर की वाणी के रस को कैसे निश दिन पीना है !
तरुण चले तुम आज छोड़ कर बीच भंवर में हम सबको !
सत्य यही है कमी खलेगी मुनिवर छोड़ गये हमको !
तुमको जाना पहचाना है घर बाहर में सभी जगह !
जैन धर्म की चर्चा होती तुम बोले उन सभी जगह !
हे गुरुवर तुम जहां बिराजो !
हमको आलोकित करना !
अनुपम शैली दिव्य धर्म की हम सबके उर में रखना !
बुन्देल खंड के इस महान संत को कैसे में श्रध्दांजलि दू ! शब्द नहीं है मेरे पास बस में तो यही प्रार्थना उस महावीर प्रभु से करता हूँ / की सदा उन्होंने आपके पथ को ही आगे बढ़ाया है और इस युग में भी जिसको लोग कलयुग कहते है / उसे सतयुग बनाकर भारत में सभी लोगो को पथ दिखलाया है वो पूरा भारत देश कभी भी उन्हें और उनके कड़वे वचनो को नहीं भूल पायेगा / में संजय जैन (मुंबई) उन्हें …. शत शत नमन तरुण सागर जी महाराज !
गुरु शिष्य आज जुदा हो गए !
गुरु से पहले ही शिष्य !
देवलोग को गमन कर गए !
सुनाते थे वो वीर प्रभु की वाणी /
खुद जीओ औरो को भी जीने दो !
यही सन्देश वो देते थे जग में सदा /
अब वो इस जग से देवलोग गमन /कर गए //
गुरु शिष्य आज जुदा हो गए !
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।