त्रिलोक सिंह ठकुरेला की कुण्डलियाँ

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trilok sinh thakurela

जिनकी कृपा कटाक्ष से ,प्रज्ञा , बुद्धि , विचार ।

शब्द,गीत,संगीत ,स्वर ,विद्या का अधिकार ।।
विद्या का अधिकार ,ज्ञान ,विज्ञानं ,प्रेम -रस ।
हर्ष , मान ,सम्मान ,सम्पदा जग की सरबस ।
‘ ठकुरेला ‘ समृद्धि , दया से मिलती इनकी ।
मंगल सभी सदैव , शारदा प्रिय हैं जिनकी ।।
अपनी अपनी अहमियत , सूई  या  तलवार ।
उपयोगी  हैं भूख में  ,  केवल  रोटी चार ।।
केवल रोटी चार ,  नहीं खा सकते  सोना ।
सूई का  कुछ  काम ,  न  तलवारों  से  होना ।
‘ठकुरेला’  कविराय , सभी  की  माला जपनी ।
बड़ा हो  कि  लघुरूप , अहमियत सबकी  अपनी ।।
सोना तपता आग में , और निखरता रूप ।
कभी न रुकते साहसी , छाया हो या धूप ।।
छाया हो या धूप , बहुत सी बाधा आयें  ।
कभी न बनें अधीर ,नहीं मन में घवरायें  ।
‘ठकुरेला’ कविराय , दुखों से कैसा रोना  ।
निखरे सहकर कष्ट , आदमी हो या सोना  ।।
नारी का सौन्दर्य है , उसका सबल चरित्र ।
आभूषण का अर्थ क्या , अर्थहीन है इत्र ।।
अर्थहीन है  इत्र ,चन्द्रमा भी शरमाता ।
मुखमण्डल पर तेज, सूर्य सा शोभा पाता ।
‘ठकुरेला’ कविराय ,पूछती दुनिया सारी ।
पाती  मान  सदैव ,गुणों से पूरित नारी ।।
रत्नाकर सबके लिए  ,होता एक समान ।
बुद्धिमान मोती चुने, सीप चुने नादान ।।
सीप चुने नादान,अज्ञ मूंगे पर मरता ।
जिसकी जैसी चाह,इकट्ठा वैसा करता ।
‘ठकुरेला’ कविराय ,सभी खुश इच्छित पाकर ।
हैं मनुष्य के भेद ,एक सा है रत्नाकर ।।
होता है मुश्किल वही, जिसे कठिन लें मान ।
करें अगर अभ्यास तो, सब कुछ है आसान ।।
सब कुछ है आसान, बहे पत्थर से पानी ।
यदि खुद करे प्रयास , मूर्ख बन जाता ज्ञानी ।
‘ठकुरेला’ कविराय , सहज पढ़ जाता तोता ।
कुछ भी नहीं अगम्य, पहुँच में सब कुछ होता ।।
थोथी बातों से कभी , जीते गये न युद्ध ।
कथनी पर कम ध्यान दे, करनी करते बुद्ध ।।
करनी करते बुद्ध , नया इतिहास रचाते ।
करते नित नव खोज , अमर जग में हो जाते ।
‘ठकुरेला’ कविराय ,सिखातीं सारी पोथी ।
ज्यों ऊसर में बीज , वृथा हैं बातें थोथी  ।।
भातीं सब बातें  तभी ,जब  हो  स्वस्थ शरीर ।
लगे  बसंत  सुहावना , सुख से  भरे समीर ।।
सुख से  भरे समीर ,मेघ  मन  को  हर  लेते ।
कोयल ,चातक  मोर , सभी  अगणित सुख  देते ।
‘ठकुरेला’  कविराय , बहारें  दौड़ी  आतीं ।
तन ,मन  रहे अस्वस्थ , कौन  सी  बातें  भातीं ।।
धीरे  धीरे  समय  ही , भर   देता  है  घाव ।
मंजिल पर जा  पंहुचती , डगमग होती नाव ।।
डगमग होती नाव  ,अंततः मिले  किनारा ।
मन की मिटती पीर ,  टूटती तम  की  कारा ।
‘ठकुरेला’ कविराय , खुशी  के  बजें मजीरे ।
धीरज रखिये मीत ,  मिले  सब  धीरे धीरे ।।
तिनका तिनका जोड़कर , बन जाता है  नीड़ ।
अगर  मिले  नेत्तृत्व तो , ताकत बनती भीड़ ।।
ताकत  बनती  भीड़ , नये   इतिहास   रचाती ।
जग  को  दिया प्रकाश , मिले  जब दीपक , बाती ।।
‘ठकुरेला’ कविराय ,ध्येय  सुन्दर  हो  जिनका ।
रचते  श्रेष्ठ  विधान ,मिले  सोना  या तिनका ।।
#त्रिलोक सिंह ठकुरेला  
  पिता —–   श्री खमानी सिंह 
 माता  —-   श्रीमती  देवी 
 प्रकाशित कृतियाँ —  1.  नया सवेरा (  बाल  साहित्य )
                           2. काव्यगंधा  ( कुण्डलिया संग्रह )
 सम्पादन —   1. आधुनिक हिंदी लघुकथाएँ 
                  2. कुण्डलिया छंद  के  सात  हस्ताक्षर 
                  3. कुण्डलिया  कानन   
                  4. कुण्डलिया संचयन 
                  5.समसामयिक हिंदी लघुकथाएं    
                  6. कुण्डलिया छंद के नये शिखर      
 सम्मान  /  पुरस्कार — 1.  राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा ‘शम्भूदयाल सक्सेना बाल साहित्य पुरस्कार ‘
                               2. पंजाब कला ,  साहित्य अकादमी ,जालंधर (  पंजाब ) द्वारा ‘  विशेष अकादमी सम्मान ‘
                               3. विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ , गांधीनगर ( बिहार ) द्वारा ‘विद्या- वाचस्पति’ 
                               4. हिंदी साहित्य सम्मलेन प्रयाग  द्वारा ‘वाग्विदाम्वर सम्मान ‘
                               5. राष्ट्रभाषा स्वाभिमान ट्रस्ट ( भारत ) गाज़ियाबाद  द्वारा ‘ बाल साहित्य भूषण ‘
                               6. निराला साहित्य एवं संस्कृति संस्थान , बस्ती ( उ. प्र. ) द्वारा ‘राष्ट्रीय साहित्य गौरव  सम्मान’ 
                                7. हिंदी साहित्य परिषद , खगड़िया (  बिहार )  द्वारा स्वर्ण सम्मान ‘
प्रसारण –   आकाशवाणी और रेडियो मधुवन से रचनाओं का प्रसारण
पाठ्य क्रम में – महाराष्ट्र राज्य की दसवीं कक्षा की पाठ्यपुस्तक ‘हिंदी  कुमारभारती’ में दो लघुकथाएँ  एवं   ‘गुंजन हिंदी पाठमाला – 3 ‘  में काव्य  रचना सम्मिलित 
विशिष्टता —   कुण्डलिया छंद  के उन्नयन , विकास और  पुनर्स्थापना हेतु कृतसंकल्प एवं समर्पित 
 सम्प्रति  —  उत्तर पश्चिम रेलवे में  इंजीनियर 
आबू रोड  (  राजस्थान )

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