पुस्तक समीक्षा
पुस्तक – वाजपेयी – एक राजनेता के अज्ञात पहलू
लेखक – उल्लेख एन.पी
अनुवाद – महेंद्र नारायण सिंह यादव
कीमत – रू. 350मात्र
प्रकाशक – मंजुल पब्लिशिंग हाउस
‘भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्रियों में से एक पर रोचक पुस्तक’ – इस पुस्तक के विषय में वॉल्टर ऐंडरसन ने बिल्कुल सही कहा है। स्वः अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक जीवन के साथ-साथ व्यक्तिगत जीवन के बारे में भी बहुत कुछ मिलेगा आपको इस किताब में। भारतीय राजनीति के कई ऐसे क्षणों को विस्तार से व रोचक तरीके से दर्ज किया गया है जिनके बारे में आज तक न कभी अखबार में पढ़ा होगा, न टीवी पर देखा होगा। आडवाणीजी और अटल जी के बीच कैसे मन मुटाव हुआ.एक बार मोदीजी से उनका 36 का आंकड़ा कैसे हो गया था? कभी कभी वे आर एस एस को क्यों नहीं भाते थे? मणिशंकर अय्यर की आँखों की किरकिरी कैसे बन गए वाजपेयी? बिना विवाह किये वे किसके साथ रहते थे? ऐसे ही सैंकड़ों सवालों तमाम उत्सुकताओं के जवाब मिलेंगे इस किताब में।
वाजपेयी के कट्टर विरोधी मणिशंकर अय्यर जैसे राजनीतिज्ञ ने भी इस पुस्तक के बारे लिखा है, ‘यह गहन शोध के बाद बेहतरीन ढंग से लिखी गई पुस्तक है।’ अय्यर ने वाजपेयी के बारे में लिखा है, ‘वह संभवतः श्रेष्ठ कांग्रेसी थे, जो इस पार्टी में कभी नहीं रहे।
लेखक ने ‘तूफान का सामना’ अध्याय में राममंदिर आंदोलन के संदर्भ में लिखा है, “स्पष्ट रूप से, वाजपेयी को आरएसएस का यह फैसला अच्छा नहीं लगा। भले ही वह बार बार कह चुके थे कि वह पूरी तरह संघ के व्यक्ति हैं, लेकिन उनके तौर तरीके और उनकी सोच समझ कहीं से भी आरएसएस से मेल नहीं खाती थी। वाजपेयी एक अलग ही किस्म के संघी थे, जो मांसाहारी भोजन करते थे। यहां तक कि भैंस का मांस तक खाते थे और उसी तरह, उन्हें व्हिस्की पीना भी पसंद था।’
“इश्क और सिसायत” अध्याय में बताया गया है कि स्नातक की पढ़ाई के दौरान अटलजी की मुलाकात राजकुमारी नाम की युवती से हुई, जो उनकी राधा बन गई। दोनों ने विवाह तो नहीं किया लेकिन दोनों में प्यार रहा और दोनों साथ रहे। इन्हीं की बेटी को अटलजी ने गोद लिया। इसी अध्याय में आपको आरएसएस के बुरे दौर की जानकारी भी मिलेगी। पुस्तक में लालकृष्ण आडवाणी और वाजपेयी के बीच खटपट के किस्से भी मिलेंगे।
‘सत्ता के साथ प्रयोग’ में बताया गया है कि वाजपेयी के भीतर अघोषित आदर्श राजनेता का दिमाग था। जो किसी आरएसएस के संस्थापक या हिंदू राष्ट्रवादी जैसा नहीं बल्कि पंडित जवाहरलाल नेहरू जैसा था।
वाजपेयी जी की विदेश मामलों पर गहरी पकड़ थी यह बात भी पुस्तक में जगह जगह बताई गई है। जिम्मेदार नेताओं की सम्वेदनशीलता पर भी कई जगह प्रकाश डाला गया है. ऐसे ही एक प्रसंग में वाजपेयी ने बजट के बाद एक भाषण में मनमोहन सिंह की खिंचाई की तो वे नाराज हो गए और इस्तीफे की पेशकश करने लगे। इस पर राव के कहने पर वाजपेयी ने उन्हें शांत किया और इस्तीफा न देने के लिए मना लिया।
गुजरात में मोदी को उन्होंने ही प्रमोट किया लेकिन बाद में उनका नियंत्रण मोदी पर ज्यादा न रहा, यह बात भी इस पुस्तक को पढ़ने पर पता चलती है।पुस्तक को तथ्यों के आधार पर लिखने की कोशिश की गई है। लेखक के निजी विचार न्यूनतम हैं। हां, उन्होंने पाठकों को अपनी चुकाई कीमत की ज्यादा से ज्यादा वसूली हो सके इसके लिए वाजपेयी जी से जुड़ी ऐसे तमाम जानकारियां दी हैं, जो शायद ही इससे पहले कहीं पढ़ीं हों।
पुस्तक में राजकुमारी कौल को उनकी ‘जीवन साथी’ बताया गया है। वाजपेयीजी के बारे में लिखा है- वाजपेयी उस पीढ़ी के नेता थे जो सदन की कार्यवाहियों को बिना जगह रोकने और अड़ंगा डालने को शर्मनाक मानते थे। वह नेहरूवादी माहौल में पले बढ़े थे और संस्थानों के निर्माण तथा उन्हें सुचारू ढंग से चलाने के लिए दी गई कुर्बानियों की समझ थी।
अंत में जो कुछ लिखा गया है वह वाजपेयी के प्रशंसकों को दिल को छू लेगा। वाजपेयी अंधविश्वासों के खिलाफ थे। लिखा है- यह सच है कि अपने हीरो, नेहरू की तरह वाजपेयी ने कई गलतियां थीं, लेकिन वह जितने बड़े क्रांतिकारी थी, उतने बड़े लोकतांत्रिक व्यक्ति भी थे, और भारतीय राजनीति उन्हें समृद्ध योगदान के बिना निर्धन ही रह जाती।
यकीनन एक शानदार किताब है। उनकी मजबूतियों ही नहीं कमजोरियों पर भी बेबाकी से लिखा गया है।किताब तहलका मचाएगी।
#शिखर चंद जैन