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दिल में बस जाना फिर रूठ के चले जाना हमदम
कभी मान जाना तो कभी बे-ख़ता सताना हमदम
जोड़ता फिर रहा हसरतें मुहब्बत की राह में सनम
इक छोर से तुझ पर आके ख़त्म हो जाना हमदम
अपने इस दिल को क्या बताऊँ कहाँ जा कर बसे
तू जो न मिला तो समझो मौत का आना हमदम
बुरे वक़्त का आना इत्तेफ़ाक़ ही समझते रहे हम
रग़बत यार की कुफ़्र तिरि यादों का जाना हमदम
जब फ़िक्र न उसको तो क्यूँ गिला रखियेगा ‘राहत’
मिरा यकीं करना और तिरा दग़ा दे जाना हमदम
#डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’
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