हिंदी कैसे बने विश्वभाषा ?

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हिंदी लेख माला के अंतर्गत डॉ. वेदप्रताप वैदिक

आज 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है। पहली बार यह 1975 में नागपुर में हुआ था। इसका आयोजन श्री अनंत गोपाल शेबड़े और श्री लल्लन प्रसाद व्यास ने किया था। इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था। उस समय मैंने ‘नवभारत टाइम्स’ में जो संपादकीय लिखा था, उसका शीर्षक था, ‘हिंदी मेलाः आगे क्या?’ इस संपादकीय की बहुत चर्चा हुई थी, क्योंकि न.भा.टा. उस समय देश का सबसे बड़ा अख़बार था और मुझे हिंदीयोद्धा के नाम से सारा देश जानने लगा था। मैंने उस संपादकीय में जो प्रश्न उठाए थे, वे आज 46 साल बाद भी देश के सामने जस के तस खड़े हैं। ये सम्मेलन भारत समेत दुनिया के कई देशों में संपन्न हो चुके हैं लेकिन नतीजा वही है। नौ दिन चले और ढाई कोस!

इसके आयोजन पर हर बार करोड़ों रु. ख़र्च होते हैं। सैंकड़ो भारतीय सरकारी अधिकारियों, हिंदी साहित्यकारों, अध्यापकों और पत्रकारों तथा तथाकथित हिंदीकर्मियों की चांदी हो जाती है। जिनके लिए भारत में भी अपने पैसों से पर्यटन करना कठिन होता है, वे मुफ़्त में विदेश-यात्राओं का आनंद लेते हैं। मुझे इन सम्मेलनों के निमंत्रण कभी हिंदी और कभी अंग्रेज़ी में भी आते रहे हैं। मैं 2003 में सूरिनाम में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन में गया, वह भी भारत और सूरिनाम के प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत आग्रह पर। वहाँ मैंने मेरे कई साहित्यकार, पत्रकार और सांसद मित्रों के समर्थन से हिंदी को संयुक्तराष्ट्र संघ की भाषा मान्य करवाने का प्रस्ताव पारित करवाया लेकिन आज तक क्या हुआ? कुछ भी नहीं। श्रीमती सुषमा स्वराज जब विदेश मंत्री बनीं तो मैंने उन्हें बार-बार प्रेरित किया। उन्होंने काफ़ी प्रयत्न किया लेकिन संयुक्तराष्ट्र संघ में हिंदी अभी तक मान्य नहीं हुई है। लेकिन वे छह भाषाएं वहाँ मान्य हैं, जिनके बोलने वालों की संख्या दुनिया के हिंदीभाषियों से बहुत कम है। चीनी भाषा (मेंडारिन) के बोलनेवालों की संख्या भी विश्व के हिंदीभाषियों के मुकाबले काफ़ी कम है। यह बात चीन में दर्जनों बार गाँव-गाँव घूमकर मैंने जानी है। यदि सं.रा. में अरबी, अंग्रेज़ी, हिस्पानी, रूसी, फ्रांसीसी और चीनी मान्य हो सकती हैं तो हिंदी को तो उनसे भी पहले मान्य होना चाहिए था लेकिन जब हमारी सरकार और नौकरशाही ने भारत में ही हिंदी को नौकरानी बना रखा है तो इसे विश्वमंच पर महारानियों के बीच कौन बिठाएगा? हम महाशक्तियों की तरह सुरक्षा परिषद् में घुसने के लिए बेताब हैं लेकिन पहले उनकी भाषाओं के बराबर रुतबा तो हम हासिल करें। यह सराहनीय है कि अटलजी और नरेंद्र मोदी ने सं. रा. में अपने भाषण हिंदी में दिए। 1999 में संयुक्तराष्ट्र में भारतीय प्रतिनिधि के नाते मैं अपना भाषण हिंदी में देना चाहता था लेकिन मुझे मजबूरन अंग्रेज़ी में बोलना पड़ा, क्योंकि वहाँ कोई अनुवादक नहीं था। संस्कृत की पुत्री होने और दर्जनों एशियाई भाषाओं के साथ घुलने-मिलने के कारण हिंदी का शब्द-भंडार दुनिया में सबसे बड़ा है। यदि हिंदी संयुक्तराष्ट्र की भाषा बन जाए तो वह दुनिया की सभी भाषाओं को अपने शब्द-भंडार से भर देगी। यदि हिंदी को संयुक्तराष्ट्र संघ में मान्यता मिलेगी तो भारत में से अंग्रेज़ी की गुलामी भी घटेगी। उसका फ़ायदा यह होगा कि दुनिया के चार-पांच अंग्रेज़ीभाषी देशों के अलावा सभी देशों के साथ व्यापार और कूटनीति में हमारा सीधा संवाद कायम हो सकेगा।
10.01.2022

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

वरिष्ठ पत्रकार एवं हिन्दीयोद्धा
संरक्षक, मातृभाषा उन्नयन संस्थान

कौन हैं डॉ. वेदप्रताप वैदिक
पत्रकारिता, राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, हिन्दी के लिए अपूर्व संघर्ष, विश्व यायावरी, अनेक क्षेत्रों में एक साथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले अद्वितीय व्यक्तित्व के धनी मातृभाषा उन्नयन संस्थान के संरक्षक डाॅ. वेदप्रताप वैदिक का जन्म 30 दिसंबर 1944 को पौष की पूर्णिमा पर इंदौर में हुआ। वे सदा मेधावी छात्र रहे। वे भारतीय भाषाओं के साथ रूसी, फ़ारसी, जर्मन और संस्कृत के भी जानकार रहे। उन्होंने अपनी पीएच.डी. के शोधकार्य के दौरान न्यूयॉर्क की कोलंबिया विश्वविद्यालय, मास्को के ‘इंस्तीतूते नरोदोव आजी’, लंदन के ‘स्कूल ऑफ़ ओरिंयटल एंड अफ़्रीकन स्टडीज़’ और अफ़गानिस्तान के काबुल विश्वविद्यालय में अध्ययन और शोध किया। कुशल पत्रकार, हिन्दी के लिए 13 वर्ष की उम्र से सत्याग्रह करने वाले हिन्दी योद्धा, विदेश नीति पर गहरी पकड़ रखने वाले सम्पादक डॉ. वैदिक जी कई पुस्तकों के लेखक रहे। सैंकड़ो सम्मानों से विभूषित डॉ. वैदिक जी 14 मार्च 2023, मंगलवार को गुरुग्राम स्थित आवास से परलोक गमन कर गए।

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।