बैसाखी के जश्न में क्यूँ ये दहशत खलल की है!
आज भी नन्हे चेहरों की मुस्कान बेदखल–सी है।।
ये वजूद मेरे भारत का सदियों याद किया जायेगा,
नम अश्रु नयन से जलियांवाला कांड सदा रुलायेगा।।
चल दिये कारवां लेकर शामिल होने बाग में,
क्या पता था अंग्रेज़ी साज़िश बिछी है उनके राग में,
अमन, शांति ही तो चाहते थे हम सरदार,
शांति नीति से करने आये थे जनरल डायर को ख़बरदार।।
एक ही रास्ता देकर तुमने बिसात है बिछाई,
हम नानका के बंदों से तुमने की बेवफ़ाई ।।
छुपकर वार कर पीठ पर छुरा तुमने चलाया,
ओ गोरी सरकार के मातहतों छल बल पर तुम्हें तनिक रास ना आया?
याद रखो, मेरे भारत का हस्ताक्षर है पाना आज़ादी,
सर कटा कर भले देनी पड़े हमें प्राणों की बर्बादी।।
तरस ना आया किसी चुनरी के साये का,
मेंहदी, कंगन और हाथ भर चूड़ी कलाई का।।
ना तरसा तू गोरा, किसी नन्ही शिशु की जान पर,
तुझे तो बस हथियानी थी सत्ता, अपने गुमान पर।।
रोलेट एक्ट भारत में लाना ही चाहते थे,
हम भारतीयों पर ब्रिटिश हुक़ूमत थोपना चाहते थे।।
१३अप्रैल१९१९ बैसाखी का दाग़ है उन गद्दारों का,
छल, बल, कपट से लील गए मेरे भारत को।।
मैं जलियांवाला बाग, आज भी आँसू बहाता हूँ,
हो कुर्बान मेरे वीरों, लालों की याद में, बिन बारिश आंसुओं से,
भीग जाता हूँ ।
सिहर उठती है आत्मा, रोंगटे कँपकँपी पा जाते हैं,
आज़ादी के शंखनाद की कुर्बानी पर हम सभी मातम मनाते हैं।।
उन निर्मम हत्या के दंश को आज तक सह रहा हूँ,
मैं जलियांवाला बाग की शहादत पर रोज़ जीकर भी मर रहा हूँ।।
जय हिंद, वंदे मातरम्,
जो बोले सो निहाल,
सत श्री अकाल।।
#माधुरी सोनी मधुकुंज,
अलीराजपुर, मध्यप्रदेश