होते थे पहले कभी
कच्चे धागों से बंधे रिश्ते पक्के !
ये रिश्ते हों खून के
या फिर धर्म के ही क्यों न हो
निभते थे –
जीवन पर्यंत आल्हादित मन से
पर अब , होता नही है ऐसा
आ गया है इन रिश्तों में भी
धागे की तरह ही कच्चापन ।
हाँ , सच ही है यह !
पर मानेँगे नहीं इसे हम
क्योंकि आडम्बर और स्वार्थ
बन गया है अब हमारी जरूरत
इसीलिए धारण कर लिया है हमने
वह मुखौटा
जिसमें छिपा रह सके
नेपथ्य का यह कटु सत्य ।
स्वीकार इसे –
रखना होगा फिर
उस कच्चे धागे का वही मान
जिसमें रहती थी समाहित –
सबकी आन , बान और शान ।
होगा तभी यह , जब –
रखेंगे हम इस कच्चे धागे का
मन से मान ।
तो – देंगे न , इस रक्षा बंधन पर
हर बहना को यह दिली सम्मान ?
#देवेन्द्र सोनी
इटारसी