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पथरीले उन रस्तों से
बहते बहते मैंने जाना
चलना क्या होता है
चलता तो सूरज भी है
आसमान पर
तपना उसकी नियति है
फिर मैं तो नदी हूँ
शीतल हूँ
अपनी शीतलता
सूरज के तपने से
कम तो नही
फिर अन्तर
क्यूँ पाती हूँ
क्या मैं नदी हूँ
इसीलिए….
#डॉ.प्रीति प्रवीण खरे
भोपाल म.प्र
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