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“रूक भी जाओ अब कि मेरा सब्र भी चुकने लगा
दिल का लोहू अश्क बनकर आंख से ढलने लगा।
चूड़ियों के साथ मैंने ले लिया हथियार भी
हर गली, हर मोड़ पर शैतान जब मिलने लगा।
बनके माली जब से तुमने फूलों को मसला किया
आदमी के जंगलों में दम मेरा घुटने लगा।
नोच लूं आकाश अपना बादलों से खींचकर
अब दुपट्टा ये मेरा परचम बना कहने लगा
बंदिशें तुमको मुबारक, ये नसीहत को बनी
यह ज़मीं आधी हमारी, लो फिजा सजने लगा”
चिलचिलाती धूप हो, क़दमों में हो मौसम की आग
कारवाँ मंज़िल के रस्ते पर मेरा बढ़ने लगा
कौन जाने ज़िंदगी को कल मिले या ना मिले
आज के ही दिन मुझे ख़ुशियों का पल मिलने लगा
डूबने का डर था पहले, किश्ती में साहिल जो था
तैरना आया तो धारों, में मज़ा मिलने लगा ।
त्याग की मूरत नहीं, मैं प्रेम की देवी नहीं
दौरे मुश्किल में हूं हिम्मत, दिल मेरा कहने लगा।
मेरी चुप्पी और धीरज, आज तुमको अलविदा
धार दो शमशीर को मेरा जिगर कहने लगा।
मैं
जिस्म भर मुझको न समझो, सूफ़ी पूरी जान है
ज़ुल्म फिर इंसान का इंसान क्यूं सहने लगा।
#संध्या सूफ़ी
परिचय
डॉ संध्या सिन्हा
असिस्टेन्ट प्रोफेसर
करीम सिटी कॉलेज, जमशेदपुर।
एम ए (त्रय), एम एड, पीएच डी (द्वय), नेट(त्रय)
हिंदी एवम भोजपुरी में लेखन- कविता, कहानी, आलेख, समीक्षा इत्यादि।
कविता संग्रह – दोहमच प्रकाशित
संपादन- जो दिल मे है,
नागेन्द्र प्रसाद रचनावली- 5 खंडों में, सरदार रघुवंश सिंह रचनावली,
इग्नू के भोजपुरी पाठ्यक्रम में मेरी कविता पढ़ाई जाती है।
इग्नू के भोजपुरी पाठ्यक्रम निर्माण समिति की सदस्या,
सन 1983 से रेडियो से कविता, आलेखों का प्रसारण,
पत्र- पत्रिकाओं में नियमित लेखन
विश्व की प्रथम भोजपुरी महिला पत्रिका ‘अँगना’ का संपादन, प्रकाशन।
विभिन्न राष्ट्रीय एवम स्थानीय संस्थाओं की सदस्यता।
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