मैं बीज हूँ नफरत का,
मेरे लिए जमीन तैयार किया गया है,
मैं अभी तो अंकुरित हो रहा हूँ,
फिर भी,
असर दिख रहा है जन मानस पर,
अपनों के बीच भी दरार है,
वृक्ष का रूप भी होगा मेरा,
फैलूंगा जन-जन में,
राष्ट्र में, विश्व में,ब्रह्माण्ड में,
छांव भी आग सी होगी मेरी,
विषैली हवा की ‘बू’,
जन जन तक पहुँचेगी ।
मानवता में दानवता का समावेश होगा,
वीभत्स नज़ारा देखेगा ,
बीज बोने वाला भी ।
पर अफ़सोस!
जमीन तैयार करने वाला,
नफरत के बीज बोने के लिए,
तैयार करेगा ज़मीन ।
पुनः पुनः पुनः ।
फल भी होंगे मेरे,
पुनः बीज तैयार होगा,
अधिक और अधिक,
बीज का प्रकीर्णन भी होगा,
बोया भी जाऊँगा,
जमीन फिर तैयार की जा चुकी होगी,
मुझे उगने के लिए।
यदि बंद न किया अभिसिंचित करना,
ईर्ष्या -द्वेष के नीर से ,
तो मैं ‘वट’ से भी अधिक जड़ फेंकूँगा,
घेर लूँगा सारी इंसानियत को ।
मैं नफरत का बीज हूँ ….।
नाम-पारस नाथ जायसवाल
साहित्यिक उपनाम – सरल
पिता-स्व0 श्री चंदेले
माता -स्व0 श्रीमती सरस्वती
वर्तमान व स्थाई पता-
ग्राम – सोहाँस
राज्य – उत्तर प्रदेश
शिक्षा – कला स्नातक , बीटीसी ,बीएड।
कार्यक्षेत्र – शिक्षक (बेसिक शिक्षा)
विधा -गद्य, गीत, छंदमुक्त,कविता ।
अन्य उपलब्धियां – समाचारपत्र ‘दैनिक वर्तमान अंकुर ‘ में कुछ कविताएं प्रकाशित ।
लेखन उद्देश्य – स्वानुभव को कविता के माध्यम से जन जन तक पहुचाना , हिंदी साहित्य में अपना अंशदान करना एवं आत्म संतुष्टि हेतु लेखन ।