1.
धरा सनातन बस रहे,प्राणी विविध प्रकार ।
पर्यावरण स्वच्छ रहे, पेड़ लगा विस्तार।।
2.
धरती पर जल थल हवा,सभी सजे आबाद।
पर्यावरण सनातनी ,रहे नहीं क्यों याद।।
3.
ईश,प्रकृति,मर्त्य रची, ये सब ले पहचान।
समझो भाव विवेक से ,पर्यावरण समान।।
4.
नित निमित्त स्व विकास के,रचते हैं इतिहास।
बहका जन इस दौड़ में, पर्यावरण उजास।।
5.
पर्यावरण स्वच्छ रखें,सहज सरल जन होय।
मर्त्य बावरे मन लगा, सदगति साधन सोय।।
6.
माँ प्रकृति का सृजन है, यह संचालन कार।
रक्षण पर्यावरण हो , हम पर निर्भर सार।।
7.
धरती का रक्षण करें , पर्यावरण बचाय।
वन हरियाली बच रहे,हितकरवचन निभाय।
8.
पृथ्वी माँ प्रकृति सदा ,सृजना चक्र चलाय।
कर संकल्पन आज ही ,पर्यावरण बचाय।।
9.
जल गंदमय गंद हवा, धरनि गंदमय होय।
सब विसंग मिलकर करे,पर्यावरण बिछोय।।
10.
परत भेदि ओजोन मत , नवल नित्य राकेट ।
कर न नाश पर्यावरण, जानि अनल आखेट।।
11.
‘ग्रीनहाऊस इफेक्ट से,बढ़े धरा पर ताप।
अटल क्षेत्र में हिम गले,पर्यावरण प्रलाप।।
12.
बाढ़ बहे रूखा कहीं,होती जो वन मार।
प्राकृत से धोखा करे, पर्यावरण विचार।।
13.
समर परीक्षण बम से,असल रसायन खाद।
देश होड़ सब दौड की , पर्यावरण विषाद।।
14.
‘बीती ताहि बिसारि देे,मत बन रे अय्यार।
पर्यावरण बचाव को , कर तैयारी सार।।
15.
पर्यावरण स्वच्छ रहे, बचे मर्त्य सन गाज।
नत् प्यारे सब धरा में , बचे प्रेत आवाज।।
16.
सरवर बाँध और नदी,बाव गंद मत डाल।
रहे नीर में स्वच्छता , पर्यावरण बहाल।।
17.
सरवर पनघट तीर जो,जल वन रंग बिगार।
पर्यावरण विनाश को , गँदली की जलधार।।
18.
सागर-सरस्वती छिपे , छोड़े अपना प्रांत।
बिन रक्षण पर्यावरण,वन भी भये अशांत।।
19.
पेड़ कटे वन छिन गये ,लगते वन वीरान।
वन्य जीव विचलित रहें,पर्यावरण अजान।।
20.
खनिज तेल की वाष्प है,जलधिधराअसमान।
पर्यावरण विसारते , तैयारी शमशान।।
21.
ऊँट मवेशी गाय जो , दिखे नहीं मैदान।
गउचर खाए आदमी ,पर्यावरण बेजान।।
22.
पाँलीथिन प्रचलन बढा,भरे जगत घरद्वार।
धरती सागर गउ नदी , पर्यावरण बिगार।।
23.
स्वजन मर्त्य अब चेतिये,अभी लगालें पेड़।
पर्यावरण बचाव को , पानी पहले मेड़।।
24.
वन वनज और जीव जो,सब में है भगवान।
पर्यावरण रखाव में , सबको साथी जान।।
25.
पेड़,धरा,वन जलज का,कर मानव सम्मान।
पर्यावरण प्रभास से ,करो वतन अरमान।।
26.
*पर्यावरणहिं* मान सब,धरा और असमान।
धरती के चारो दिशा, बने बनाव अमान।।
27.
पंच तत्व *पर्यावरण*,क्षिति जल गगन समीर।
पावक मय संसार सब ,समझे सोई धीर।।
28.
जीवन धन *पर्यावरण* पेड़ और सब वन्य।
जंगल बिन मंगल नहीं, मानव हो कर्मन्य।।
29.
स्वच्छ रहे *पर्यावरण* तभी सिरजते प्रान।
सजग होय रक्षा करो, समझें सभी अजान।।
30.
*पर्यावरण* बचाव के,करले सोच विचार।
घर मैदान व खेत में, रोपे पेड़ हजार।।
31.
*पर्यावरण* संरक्षण , प्राण सजाने आप।
प्रकृति का सम्मान कर, तभी मिटें संताप।।
32.
पैमाना *पर्यावरण* ,जल थल मय असमान।
पेड़ लगा पालो सदा , मानो तनय समान।।
33.
बचा सके ये पेड़ जो , शीश कटे भी लाभ।
अपनी रीत सनातनी, *पर्यावरण* की आभ।।
34
वट सावित्री अराधना,पीपल तनय पचास।
जीवन दीर्घ अवधि रहे, *पर्यावरण* प्रभास।।
35.
आँक्सीजन भर जोर दे,पीपल देव निवास।
*पर्यावरण* मीत बने , पंछी बैठे आस।।
36.
नीम निबोली निरामया,नित्य नियम निरहार।
*पर्यावरण* रखे दवा, करती जीवन पार।।
37.
जीवन रेखा खेजड़ी , सींगर पत्ते छाँव।
*पर्यावरण* अड़ी रहे,खेत मेड़ अरु गाँव।।
38.
आम राज फल होत है,सद्छाँया दातार।
*पर्यावरण* संग जमे, पंछी बाग बहार।।
39.
अडिग पेड़ है रोहिड़ा,काष्ठ पात उपयोग।
*पर्यावरण* रक्षा करे, मनहर सत संयोग।
40.
शीशम शीतल श्याम सी,छतरी छाँया छान।
*पर्यावरण* प्रण पाले,सजग सन्त सम शान।।
41.
खाँसी मिठहारी गुणी ,जम्बउ जंग अजीर्ण।
*पर्यावरण* संग दवा, मानव के ज्वर-जीर्ण।।
42.
तरुवर मीत बनाइये,सच्ची संगत प्रीत।
*पर्यावरणी* नेह की , रहो निभाते रीत।।
43.
गौरव पालन में भरा, मिष्ठ भाव हरियाल।
पेड़ समादर तात के, *पर्यावरण* बहाल।।
44.
छाँया भली जवान की,आते फल फिर मीत।
पिक तोते चिड़िया कहे, *पर्यावरणक* गीत।
45,
जल का सदउपयोग हो,रखें स्वच्छजलस्रोत
पर्यावरण बचाव कर,रखलो जीवन ज्योति।।
46.
कठिन जरापन में रहे,एकाकी से लोग।
*पर्यावरण* प्रेम बने,तब उत्तम संजोग।।
47.
मन के भाव,प्रबल सखे,किसे कहोगे पीड़।
*पर्यावरण* वृक्ष बिना, कहाँ बया का नीड़।।
48.
पेड़ों में जीयें मरें ,जलना जिसके संग।
*पर्यावरण* व पेड़ ही,जंगम जीवन जंग।।
49.
कार्बन की बढ़ती हवा , कर्म मानवीय पीर।
*पर्यावरण* मलीन है ,क्योंकर बरषहि नीर।।
50.
जलमलीन संगत धरा,कचरा प्लास्टिक भार।
*पर्यावरण* विचारिए , गँदले नदी कगार।।
51.
पृथ्वी पर चहुँ ओर है,सबहि आवरण सोय।
पर्यावरण कहत उसे, मीत सुनो सब कोय।।
52.
क्षितिजलपावक है गगन,बहती साफ समीर।
पर्यावरण वही बनत, जीवन और शरीर।।
53.
पेड़ और वन बाग से , बिगड़े नहि ये साज।
शुद्ध रहे पर्यावरण, करलो सब अस काज।।
54.
खेत-खार मैदान में , मन्दिर पेड़ लगाव।
पर्यावरण सुधार कर,प्राण वायु सब पाव।।
55.
प्रिये पेड़ है पूत सम , करलो रक्षण आज।
पर्यावरण बचाइ लौ, कर जंगल सिर ताज।।
56.
सिर के बदले पेड़ है , यही पुरानी रीत।
पर्यावरण सुधार की,सुनो कहानी मीत।।
57.
बरगद है सौ पूत सम,लम्बी आयु जहान।
पर्यावरण जहाँ बसे , सच्चा साथी मान।।
58.
पीपल विष्णु बसे जहाँ,प्राण पवन भरपूर।
पर्यावरण बने वहीं, पावनता का नूर।।
59.
नीम निरोगी तन रखे,शत रोगी उपचार।
पर्यावरण समेत पशु,चारा वन आधार।।
60.
जीवन देती खेजड़ी,फल पत्ते वन छाँव।
पर्यावरणी संतुलन , रखती अंगद पाँव।।
61.
फल का राजा आम्र है,छाँया की भरमार।
पर्यावरण सम्भलता, कोयल गाती डार।।
62.
वीर बड़ा बंबूल है, लकड़ी पात् समूल।
पर्यावरण सहाय है,निज रक्षा हित शूल।।
63.
शीशम सुन्दर सागवां,गहरी शीतल छाँय।
प्रहरी बन बैठे यहाँ,सिंह कपि संग गाय।।
64.
जम्बू गुणकारी बने,मधु हारी मय अंग।
खाँसी संग अजीर्ण में, पर्यावरणी संग।।
65.
सच्चेे मीत बनाइ के,वृक्ष लगाय अनेक।
पर्यावरण सँवारना , भाव जगाएँ नेक।।
66.
पालन पोषण सब करो,मधुर भाव हरियाय।
एक एक पौधा बने , पर्यावरण सहाय।।
67.
यौवन छाँया वृक्ष दे , मीठे फल रस दार।
चिड़िया मैना कूक ते , पर्यावरण बहार।।
68.
सुन्दर नीड़,बसेर में , पंछी कलरव तान।
मिले प्राण वायू हमें, मुख में हो मुस्कान।।
69.
वृद्ध अवस्था दौर में , सोच कहाँ है ठौर।
पर्यावरण बिना यहाँ,नहीं मीत तरु और।।
70.
मन के सारे भाव में,सुख-दुख पीड़ा तोल।
पर्यावरण सुधार कर,मन की आँखे खोल।।
71.
जिन बाहों में जान है,आज तुम्हारे साथ।
पौधा बनता पेड़ है , संग तुम्हारे हाथ।।
72.
पौधा लाओ एक तुम,खेत मेड़ लग जाय।
आओ बन्धु साथ में, पर्यावरण बचाँय।।
73.
गैस बुरी है कार्बन , अवश् प्रदूषण लाय।
पर्यावरण जहर घुले ,धूम मेघ बन आय।।
74.
धरा प्रदूषित संग में,जल भी गन्दा होय।
पर्यावरण सन् शत्रुता ,रक्षा कर अब कोय।।
75.
स्वच्छ रखें जलस्रोत तो,मिलता जीवनदान।
दोहन ज्यादा ना करो , पर्यावरण सुजान।।
76.
पालन पोषण पेड़ प्रिय,परम्परा पितभाँति।
पर्यावरण प्रतीत पर, पंछी पथिक पदाति।।
77.
पौरुषपथ पहचान पुरु,पूत पेड़ प्रतिपाल।
प्रतिघाती पर्यावरण, पातक पड़े पताल ।।
78.
पल पल प्रण पूरा पड़े,पर्यावरण प्रदाह।
पान पताशा पाहुना, पूजन पेड़ प्रवाह।।
79.
पेड़ पर्वती पर्यटन, पथजलीय पतवार।
परमेश्वर पति पार्वती,पर्यावरण प्रसार।।
80.
पेड़ परिक्रम पीपली,प्रिय परवरदीगार।
पूत पातकी पंथ पर,पर्यावरण प्रसार।।
81.
प्रियतम पत्र पठाईए,पहले पढ़ परबद्ध।
पर्यावरण प्रकाशिए, पाले पेड़ प्रसिद्ध।।
82.
प्रेम पत्रिका प्रीति पढ़े, प्रिय प्रसन्नता पास।।
पर्यावरण प्रभास पर,पाएँ पहल प्रकाश।।
83.
पौधारोपण प्रण पले,पाणिग्रहण प्रचार।
पर्यावरणन पालना,पायक पथ प्रतिहार।।
84.
परसों पहले पहर पर,पता परस्पर पाय।
पर्यावरण प्रयास पर,परिवारिक पर्याय।।
85.
परदेशी प्रिय पावना,पेड़ प्रकार पलास।
प्रण पालन पर्यावरण,पा प्रमोद परिहास।।
86.
प्रीत पहल प्रीतम पगी,परदेशी परनार।
पर्यावरण प्रसारता, पनिहारी पनहार।।
87.
पुत्री प्रिये परणातहीं ,पंछी पंख पसार।
पीहर पौधे प्रीत पर ,पर्यावरण पखार।।
88.
पर पीड़ा पर पालना,पाले पर परिवार।
पर्यावरण पखारता, पावन पारावार।।
89.
पर्वतराजा पिताश्री, प्राणी पशु पतिनाथ।।
पर्यावरण परिजन प्रिय,पारवती पतिसाथ।।
90.
प्रातकाल पय पीजिये,पियारे पहलवान।
पर्यावरण परम्परा , प्रण पूरण परवान।।
91.
पावक पवन पृथ्वी पे,पृथा पाल परिधान।
पर्यावरण प्रभाविता, पानी प्रिय परिमान।।
92.
पाथल पीथल पातशा,प्रण पाती परिताप।
पर्यावरण पत पाले,परिजन प्रीत प्रताप ।।
93.
पर्यावरणी पर्यटन,परिकल्पित परिणाम।
पार पयोधि परिभ्रमण,परामर्श परधाम।।
94.
प्रभासपट्टन पर पड़ा,पाला पूँजी पार।
परधर्मी प्रतिघातिया ,पर्यावरण प्रहार।।
95.
प्राण प्रतिष्ठा पद प्रथा, पाले पालनहार।
पर्यावरण पाले पर,पुरुषोत्तम परिवार।।
96.
परनारी परधन पगे, पातक पूत प्रजाति।
प्रतिघाती पर्यावरण,प्राणपतन परजाति।।
97.
परहित परसेवा पलक,परोपकार प्रयास।
परिचारक पर्यावरण,पद प्रतिष्ठ परिभाष।।
98.
परतंत्रता परदेशी ,पूर्ण पतन प्राणांत।
पर्यावरणन पातकी,पातकर्क परिशांत।।
99.
पानी पत पतवार पल,पलक पयोधि पयोद।
पर्यावरण पर्यंक पर, परलौकिक परिमोद।।
100.
पारगमन पारावरन,परिपालन परिवार।
पेड़ पौध पर्यावरण,प्रकटे परिजन पार।।
नाम- बाबू लाल शर्मा
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः