आज मैं अपनी शर्तों पर जीना चाहती हूँ,
चाय की चुस्की संग
दिल का गीत गुनगुनाना चाहती हूँ।
न रोक,न टोक,
बेफिक्री से मौज में जीना चाहती हूँ..
आज मैं अपनी शर्तों पर जीना चाहती हूँ।
ख़ुशी से विभोर होकर नाचूँ,
न किसी के देख लेने की हिचक हो..
जो चाहता है मन ये बावरा,
उसे हासिल करना चाहती हूँ..
आज मैं अपनी शर्तों पर जीना चाहती हूँ।
न रहे किसी काम की चिंता,
हर दिन को ख़ास बनाना चाहती हूँ..
बेड़ियाँ सारी जो लादी हैं समाज ने,
तोड़कर उन्हें उड़ जाना चाहती हूँ..
आज मैं अपनी शर्तों पर जीना चाहती हूँ।
जियूँ अब अपनी शर्तों पर,
बंदिशों के जाल को तोड़ देना चाहती हूँ..
समाज के दोगले नियमों से,
दूर जाना चाहती हूँ..
आज मैं अपनी शर्तों पर जीना चाहती हूँ।
बेफिक्री से घुमूँ रातों को,
जो मन चाहे वो कर सकूँ..
न खुद को बचाने की बेबसी हो,
न इस समाज के तानों का डर हो..
बस कर सकूँ अपने मन का,
यही बार-बार दोहराना चाहती हूँ,
आज मैं अपनी शर्तों पर जीना चाहती हूँ।
#साक्षी पेम्माराजू ‘स्वप्नाकाक्षी’
परिचय : बैंगलोर में निवास कर रही साक्षी पेम्माराजू ‘स्वप्नाकाक्षी’ का इंदौर से भी नाता है,क्योंकि मध्यप्रदेश के झाबुआ से इन्होंने अपनी पढ़ाई की है। बचपन से हिन्दी में कविताएँ लिखने का इनका शौक अब तो जुनून है,जो स्वप्नाकशी नाम से देखने में आता है। फिलहाल यह सॉफ़्टवेयर इंजीनियर के रुप में कार्यरत हैं।