जो शख्स इस गुमां में भटकता रहा ताउम्र,
जज्ब अपनी मुट्ठी में सारे जहां को करूंगा मैं..
होकर रूखसत जहां से गया जब खाक-ए-कब्र में,
हथेली में उसके चंद लकीरों के सिवा कुछ न था।
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तेरे लिए मेरे दिल में चाहत हो ऐसे,
मोती के लिए तरसती हो सीप जैसे।
पाकर भी तुझे पाने का सुकून न हो,
तपती धरा पर चन्द बूंद गिरी हो जैसे।
#रविंद्र नारोलिया
परिचय : इंदौर(मध्यप्रदेश) के परदेशीपुरा क्षेत्र में रविंद्र नारोलिया रहते हैं। आपका व्यवसाय ग्राफिक्स का है और दैनिक अखबार में भी ग्राफिक्स डिज़ाइनर के रुप में ही कार्यरत हैं। 1971 में जन्मे रविंद्र जी कॊ लेखन के गुण विरासत में मिले हैं,क्योंकि पिता (स्व.)पन्नालाल नारोलिया प्रसिद्ध कथाकार रहे हैं। आप रिश्तों और मौजूदा हालातों पर अच्छी कलम चलाते हैं।
क्या खूब लिख रहे हो भाई,
जन्मजात कवि हो जैसे !