सामूहिक हिंसा कैसे रुके ?

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vaidik
यह खुशी की बात है कि सरकार ने सामूहिक हिंसा या भीड़ की हिंसा के विरुद्ध सोचना शुरु कर दिया है। यह कितना विचित्र है कि इसका श्रेय हमारे सर्वोच्च न्यायालय को है, उन नेताओं को नहीं, जो जनता की बीच रहने की डींग मारते हैं। यह ठीक है कि गृहमंत्री राजनाथसिंह ने सांसद में सामूहिक हिंसा की निंदा की लेकिन उसके निराकरण की सारी जिम्मेदारी उन्होंने राज्य सरकारों पर छोड़ दी। इस मुद्दे पर मोदी की चुप्पी ने यह छाप छोड़ी कि मानों केंद्र में सरकार नाम की कोई चीज है ही नहीं। चलिए, अब गाड़ी फिर से पटरी पर आ गई है। अब गृह-सचिव के नेतृत्व में बनी अफसरों की एक कमेटी एक माह में रपट दे देगी कि सामूहिक हिंसा कैसे रोकी जाए ? हो सकता है कि वह रपट काफी अच्छी हो और उसके आधार पर बना कानून देश के स्वयंभू-सिरफिरे और हिंसक नागरिकों को काबू कर सके, जरा डरा सके। रपट जैसी भी आए, मेरा विचार है कि भीड़ की हिंसा किसी भी बहाने से हो, उसकी सजा इतनी सख्त होनी चाहिए कि उसका विचार पैदा होते से ही हिंसक लोगों के पसीने छूटने लगें। एक आदमी की हत्या की सजा पूरी भीड़ के सौ आदमियों को मिले। 15-20 दिन में ही मिले। उन्हें लाल किले, विजय चौक या इंडिया गेट पर लटकाया जाए और तीन दिन तक लटकने दिया जाए तो देखिए, उसका क्या असर होता है ! गाय की रक्षा या बच्चे के अपहरण या विधर्मी से शादी या अछूत के मंदिर प्रवेश या विधर्मी से विवाद आदि किसी भी बहाने से हिंसा करनेवालों के होश पहले से उड़ जाएंगे। लेकिन सिर्फ सजा से समाज नहीं बदलेगा। वह हिंसा कई दूसरे रुप धारण कर लेगी, जिसे कानून नहीं पकड़ पाएगा। इसीलिए जरुरी है कि विभिन्न धर्मों के साधु-संत, मुल्ला-मौलवी, पादरी-बिशप, मुनि-भिक्षु लोग अपने अनुयायियों को समझाएं कि भीड़ बनाकर किसी निहत्थे इंसान को मौत के घाट उतारना कितना बड़ा पाप है। जो लोग अपने आप को राष्ट्रवादी और हिंदुत्ववादी कहते हैं, इस मामले में उनकी जिम्मेदारी सबसे ज्यादा है। जब कानून अपना काम करेगा तो वे उसे अपने हाथ में लेकर अपराध क्यों करें ? निहत्थे लोगों पर किसी बहाने से भी भीड़ बनाकर हमला करना शुद्ध कायरता है और हिंदुत्व का भी अपमान है। अपनी सरकार का भी अपमान है। जिसके कानून की रक्षा के लिए आपको कानून तोड़ना पड़े, वह सरकार भी क्या सरकार है ?
#डॉ. वेदप्रताप वैदिक

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।