मातृभाषा उन्नयन संस्थान के संरक्षक हिन्दी योद्धा वैदिक जी नहीं रहे

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गुड़गांव में ली अंतिम सांस, दिल्ली में होगा अंतिम संस्कार

इंदौर। बड़े दु:ख के साथ सूचित करने में आ रहा है कि मातृभाषा उन्नयन संस्थान के संरक्षक, हिन्दी योद्धा, वरिष्ठ पत्रकार, जन दसेक्ष के संस्थापक डॉ. वेदप्रताप वैदिक नहीं रहे। मंगलवार सुबह गुरुग्राम स्थित निज निवास पर अंतिम सांस ली, आपका अंतिम संस्कार लोधी क्रेमेटोरियम, दिल्ली में होगा।

डॉ. वैदिक के निधन का समाचार मिलते ही पत्रकारिता, साहित्य व हिन्दी जगत में शोक की लहर छा गई। अनेक जानी-मानी हस्तियों, पत्रकारों, साहित्यकारों और हिन्दी प्रेमियों ने डॉ. वैदिक के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया है। परिजनों के मुताबिक आज सुबह नहाने के समय बाथरूम में गिर गए, जिसके बाद तत्काल उन्हें नज़दीकी अस्पताल ले जाया गया, जहाँ चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

78 वर्षीय डाॅ. वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है, जिन्होंने हिन्दी के ध्वज को वैश्विक स्तर पर लहराया, मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत् संघर्ष और त्याग किया।
महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी और डाॅ. राममनोहर लोहिया की महान परंपरा को आगे बढ़ाने वाले योद्धाओं में वैदिकजी का नाम अग्रणी है।

हिन्दी में हस्ताक्षर बदलो अभियान भी मातृभाषा उन्नयन संस्थान द्वारा डॉ. वैदिक जी की प्रेरणा व मार्गदर्शन में ही संचालित हो रहा था, जिसमें अब तक 21 लाख से अधिक लोगों ने अपने हस्ताक्षर अन्य भाषाओं से हिन्दी में बदले हैं।

पत्रकारिता, राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, हिन्दी के लिए अपूर्व संघर्ष, विश्व यायावरी, प्रभावशाली वक्तव्य, संगठन-कौशल आदि अनेक क्षेत्रों में एक साथ मूर्धन्यता प्रदर्षित करने वाले अद्वितीय व्यक्त्तिव के धनी डाॅ. वेदप्रताप वैदिक का जन्म 30 दिसंबर 1944 को पौष की पूर्णिमा पर इंदौर में हुआ। वे सदा प्रथम श्रेणी के छात्र रहे। वे रुसी, फ़ारसी, जर्मन और संस्कृत के भी जानकार हैं। उन्होंने अपनी पीएच.डी. के शोधकार्य के दौरान न्यूयार्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी, मास्को के ‘इंस्तीतूते नरोदोव आजी’, लंदन के ‘स्कूल ऑफ़ ओरिंयटल एंड एफ़्रीकन स्टडीज़’ और अफ़गानिस्तान के काबुल विश्वविद्यालय में अध्ययन और शोध किया।

वैदिक जी नेे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ‘स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़’ से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। वे भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अपना अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा।
वे लगभग 10 वर्षों तक पीटीआई भाषा (हिन्दी समाचार समिति) के संस्थापक-संपादक और उसके पहले नवभारत टाइम्स के संपादक (विचारक) रहे हैं। फ़िलहाल मातृभाषा उन्नयन संस्थान के संरक्षक के तौर पर लगातार हिन्दी में हस्ताक्षर अभियान का मार्गदर्शन करते हुए दिल्ली के राष्ट्रीय समाचार पत्रों तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग 200 समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर डाॅ. वैदिक के लेख हर सप्ताह प्रकाशित होते हैं।

डॉ. वैदिक के निधन पर मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने दुःख व्यक्त करते हुए कहा ‘हिन्दी ने अपना लाल खो दिया।’ उन्होंने कहा कि ‘डॉ. वेदप्रताप वैदिक जी के जाने से हिन्दी भाषा ने अपना कर्मठ योद्धा खो दिया। आप मातृभाषा उन्नयन संस्थान के संरक्षक के तौर पर सदैव मेरा व संस्थान का मार्गदर्शन करते रहे। हाल ही में दिल्ली में विश्व पुस्तक मेले में जब आप संस्मय के स्टॉल पर पधारे तब भी केवल दो चिंता, एक तो ‘मेरे बेटे यानी अर्पण की किताब आई है तो वह मुझे दो, मैं पढूंगा’। तब भी मैं दादा के सामने बस आँसुओं को रोक रहा था कि कितनी आत्मीयता है मुझसे। दूसरा ‘कितने हस्ताक्षर बदल गए अर्पण, जल्दी से एक करोड़ पूरे करो, फिर मैं दिल्ली में तुम्हारा बड़ा अभिनन्दन करूँगा’।’

डॉ. अर्पण जैन ने बताया कि ‘दादा अक्सर कहते थे, हिन्दी महारानी है, अंग्रेज़ी नौकरानी। हमें अपनी महारानी का स्वाभिमान बचाना है। आपने जन दसेक्ष की स्थापना की थी। आज मैंने अपना आराध्य खो दिया। मैं फिर अकेला महसूस कर रहा हूँ। संस्थान के कार्य शेष थे जो दादा के संरक्षण में पूरे होने थे। ईश्वर अपने श्री चरणों में पूज्य वैदिक जी को स्थान दें।’

भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। वह 78 वर्ष के थे। उन्होंने कहा कि ‘हिंदी भाषा के लिए किए गए डॉ. वैदिक के प्रयास हम सभी के लिए प्रेरणादायक हैं। उनका लेखन युवाओं का सदैव मागदर्शन करता रहेगा।’

प्रो. द्विवेदी ने कहा कि ‘वैदिक जी के निधन से हिंदी पत्रकारिता में एक बड़ा स्थान खाली हो गया है। वे देश-विदेश के घटनाक्रम पर पैनी निगाह रखने वाले समीक्षक थे। पड़ोसी देशों को लेकर उनकी जानकारी बेजोड़ थी। उनका निधन भारतीय पत्रकारिता के लिए अपूरणीय क्षति है।’ उन्होंने कहा कि ‘हिंदी भाषा को लेकर जो आंदोलन उन्होंने शुरू किया, उसे कोई नहीं भूल सकता। ऐसे संवेदनशील पत्रकार का हमारे बीच न होना बहुत दु:खी करने वाला क्षण है।’

इंदौर प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी ने डॉ. वैदिक के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि ‘देश की पत्रकारिता में इन्दौर का स्तम्भ रहे डॉ. वैदिक हम सबका घमण्ड रहे, ताउम्र हिन्दी पत्रकारिता की सेवा करते हुए अंतिम सांस तक वे हिन्दी और पत्रकारिता के प्रति सजग रहकर कर्मयोद्धा की भाँति कार्य करते रहे। उनके निधन से आज पत्रकारिता का स्तम्भ ढह गया। वैश्विक स्तर पर भारत की कई पहचान में से एक डॉ. वैदिक की पत्रकारिता भी रही। कई राष्ट्र प्रमुखों से डॉ. वैदिक जी के संबंध भारत का गौरव है। इंदौर प्रेस क्लब व पत्रकारिता जगत् की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।’

साहित्य अकादमी, म. प्र. के निदेशक डॉ. विकास दवे ने कहा ‘वैदिक युग के युगावसान के पल है।’ उन्होंने लिखा कि ‘श्रद्धेय वेदप्रताप वैदिक एक ऐसा नाम जो हिंदी आंदोलन का पर्याय बन कर रहे। एक लंबे समय तक अंग्रेजी हटाओ आंदोलन का हिस्सा रहने के बाद उस आंदोलन को सकारात्मक रूप देते हुए हिंदी बचाओ अभियान में परिवर्तित कर दिया। उनके रग रग में हिंदी बहती थी। प्रतिदिन नियमित लेखन उनकी एक अद्भुत विशेषता थी। संपादक के रूप में उन्होंने एक युग तैयार किया जिसे हम निसंकोच ‘वेदप्रताप वैदिक युग’ कह सकते हैं। स्तंभकार के रूप में वे इतने यशस्वी रहे कि एक लेख लिखकर आधुनिक तकनीक के माध्यम से वे एक साथ इतनी जगह भेजते थे कि सभी संपादक उनकी सहज स्वीकृति लिए बगैर इन लेखों का प्रकाशन कर दिया करते थे। वह सहास्य कहते थे -“मैं तो फिलर हूं कुछ ना मिले तो मुझे छाप देना।” किंतु देश का हर वरिष्ठ संपादक इस बात को जानता था कि जब वैदिक जी छपेंगे तो उस पन्ने पर शेष लेखक स्वतः हाशिए पर चले जाते हैं।
विदेश नीति हो या घरेलू राजनीति हर विषय पर उनकी पकड़ अद्भुत रही। उनका चला जाना सचमुच एक युग का अवसान है। हिंदी आंदोलन को अभी आप की बहुत आवश्यकता थी वैदिक जी। मेरा सौभाग्य रहा कि उनकी अध्यक्षता में मैंने व्याख्यान दिया और एक बार मेरी अध्यक्षता में उनका भी व्याख्यान हुआ। मुझ जैसे बच्चों को व्यासपीठ पर सम्मान देकर बड़ा कैसे बनाया जाता है यह वैदिक जी से सीखना चाहिए। प्रतिदिन वह एक आलेख व्हाट्सएप पर उनके निजी अकाउंट से भेजा करते थे। आज मन रो उठा जब उसी अकाउंट पर उनके ही नाम से उनके हमेशा के लिए भौतिक संसार छोड़कर चले जाने का समाचार प्राप्त हुआ। क्षणभंगुर जीवन का यह स्वरूप ऐसे ही अवसरों पर ध्यान में आता है। अब वे हमारे मध्य नहीं हैं किंतु उनकी लेखनी युगों तक हम सबको जागृत करती रहेगी। उनकी पुण्य स्मृतियों को प्रणाम करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।’

डॉ. वैदिक के निधन पर मातृभाषा उन्नयन संस्थान के संरक्षक राजकुमार कुम्भज ने श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए कहा, ‘डॉ. वैदिक का यूँ अचानक चले जाना हतप्रभ कर गया। आज हिन्दी के कर्मठ कार्यकर्ता का अवसान हो गया। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।’

विचार प्रवाह साहित्य मंच के अध्यक्ष मुकेश तिवारी ने कहा कि ‘आज सुबह दुःखद सूचना आई। सूचना थी हिन्दी योद्धा वरिष्ठ पत्रकार दादा वेदप्रताप वैदिक जी के न रहने की। मैंने फ़ौरन मातृभाषा उन्नयन संस्थान-वैश्विक के अध्यक्ष डाॅ. अर्पण जैन को मोबाइल पर काॅल किया। उन्होंने रुंधे गले से कहा – “भैया, सूचना सही है, दादा वैदिक जी नहीं रहे।”
इसके बाद मेरे कान में वैदिक जी का यह स्वर गूंजने लगा – “तुम दोनों (डाॅ.अर्पण और मैं) हिन्दी के लिये अच्छा काम कर रहे हो, करते रहो।” ऐसा उन्होंने अभी कुछ महीने इंदौर स्थित उनके पैतृक निवास पर मुलाकात में कहा था। उस दिन वह बहुत जिज्ञासु भाव से हम दोनों से मध्यप्रदेश और इंदौर की साहित्यिक और हिन्दी संबंधी गतिविधियों के बारे में विस्तार से जानकारी ले रहे थे। वह साथ ही मार्गदर्शन करते चल रहे थे कि आगे और क्या किया जा सकता है। मैं डॉ वैदिक जी के चरणों में साहित्य जगत् की ओर से श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ।’

मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. नीना जोशी, राष्ट्रीय सचिव गणतंत्र ओजस्वी, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष शिखा जैन, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य नितेश गुप्ता, भावना शर्मा, प्रेम मङ्गल, सपन जैन काकड़ीवाला सहित वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रघुवंशी, हेमन्त जैन, संस्थान के प्रदेश अध्यक्ष अमित मौलिक, श्रीमन्नारायण विराट सहित कवि गौरव साक्षी, अंशुल व्यास, जलज व्यास, सुरेश जैन, रमेश धाड़ीवाल इत्यादि ने श्रद्धासुमन अर्पण किए।

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।